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तिलक लगाने का प्रचलन क्‍यों? – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

तिलक लगाने का प्रचलन क्‍यों? 

उल्लेखनीय है कि हमारे मस्तिष्क (ललाट) से ही तिलक, टीका, बिंदिया का संबंध इसलिए जोड़ा गया है कि सारे शरीर का संचालन कार्य वहीकरता हे। महर्षि याज्ञवल्क्य ने शिवनेत्र की जगह को ही पूजनीय माना है। पवित्र विचारों का उदय मस्तिष्क पर तिलक लगाने से होता है। ललाट के मध्य मानवशरीर का वह बिंदु हे, जिससे निरंतर चेतन अथवा अचेतन दोनो अवस्थाओं में विचारों का झरना प्रवाहित होता रहता है। इसी को आज्ञाचक्र भी कहते हैं। प्रमस्तिष्क, मस्तिष्क का वह ऊपरी भाग हे, जो मनुष्य को देवता अथवा, राक्षस, प्रकांड विद्वान अथवा मूर्ख बनाने की शक्ति रखता है हमारी दानों भोवों के बीच सुषुम्ना, इडा और पिंगला नाडियों के ज्ञानंततुओं का केंद्र मस्तिष्क ही है, जो दिव्य नेत्र या तृतीय नेत्र के समान माना जाता हे। इस पर तिलक लगाने से आज्ञाचक्र जाग्रत होकर व्यक्ति की शक्ति को ऊर्ध्वगामी बनाता हे, जिसस क्‍ उसका ओज ओर तेज बढ़ता है। शरीरशास्त्र की दृष्टि से यह स्थान पीयूष ग्रंथि (पीनियल ग्लेंड) का हे, जहां अमृत का वास होता है। इसका स्त्राव सोमरस के | तुल्य माना गया है। ललाट पर नियमित रूप से तिलक लगाते रहने से शीतलता, ‘ तरावट एवं शांति का अनुभव होता हे। मस्तिष्क के रसायनों सेराटोनिन व ह बीटाएंडोरफिन का स्त्राव संतुलित रहने से मनोभावों में सुधार आकर उदासी दूर होती है। सिर दर्द की पीड़ा नहीं सताती और मेधाशक्ति तेज होती है। मन निर्मल होकर हमें सत्पथ पर अग्रसर होने के लिए प्रेरित करता है। विवेकशीलता बनी – रहती है और आत्म विश्वास बढ़ता हे। | आमतौर पर चंदन, कुकुम, मृत्तिका व भस्म का तिलक लगाया जाता हे। । चंदन के तिलक लगाने से पापों का नाश होता है, व्यक्ति संकटों से बचता – है, उस पर लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है, ज्ञान तंतु संयमि व सक्रिय | रहते हैं, मस्तिष्क को शीतला और शांति मिलती हे। कुकुम में हल्दी का संयोजन होने से त्वचा को शुद्ध रखने में सहायता मिलती है। और मस्तिष्क के स्नायुओं का संयोजन प्राकृतिक रूप में हो जाता है। संक्रामक कीटाणुओं को नष्ट करने में शुद्ध मृत्तिका का महत्वपूर्ण योगदान होता है। यज्ञ की भस्म का तिलक करने से सौभाग्य की वृद्धि होती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ३ तिलक लगाने से ग्रहों की शांति होती हेै। तंत्रशास्त्र में वशीकरण आदि के लिए भी तिलक लगाया जाता है। धर्मशास्त्र के अनुसार ललाट पर तिलक या टीका धारण करना एक आवश्यक कार्य है, क्‍योंकि यह हिंदू संस्कृति का एक अभिन्‍न अंग है। कोई भी धार्मिक आयोजन या संस्कार बिना तिलक के ४ नहीं माना जाता। जन्म से लेकर मृत्युशया तक इसका प्रयोग किया जाता है। यों तो देवी देवताओं , योगियों, संतों महात्माओं के मस्तक पर हमेशा तिलक लगा मिलता है, लेकिन आमलोगों में धार्मिक आयोजनों, पूजा पाठ, संस्कारों के अवसरों पर तिलक लगाने का प्रचलन हे। भारतीय परंपरा के अनुसार तिलक लगाना सम्मान का सूचक भी माना जाता है। अतिथियों को तिलक लगाकर विदा करते हैं, शुभयात्रा पर जाते समय शुभकामनाएं प्रकट करने के लिए तिलक लगाने की प्रथा प्राचीनकाल से आ रही है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है
स्नान दान॑ तपो होमो देवतापित॒कर्म च।
तत्सर्व निष्फल यादि ललाटे तिलक विना। ब्राह्मणस्तिलक॑ कृत्वा कुर्य्यात्संध्यान्तर्पणम्‌ ॥
-ब्रह्मवेवर्त पुराण / ब्राह्मपर्व 26
अर्थात्‌ स्नान, होम, देव ओर 08४ कर्म करते समय यदि तिलक न लगा हो, तो यह सब कार्य निष्फल हो जाते हैं। ब्राह्मण को चाहिए कि वह तिलक ध 7रण करने के बाद ही संध्या, तर्पण आदि संपन्न करे।
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