धार्मिक कर्मकांडों में पुष्प का महत्व क्यों?
पुष्प के संबंध में कहा गया है
पुण्य संवर्धनाच्वापि पापौघपरिहारत :।
पुष्पकलार्थप्रदानार्थ पुष्पमित्यभिधीयते॥
-कुला्ण॑वतत्र
अर्थात् पुण्य को बढ़ाने, पापों को भगाने और श्रेष्ठ फल को प्रदान करने के कारण ही यह पुष्प कहा जाता हे। दैवस्य मस्तंक कुर्यात्कुसुमोपहितं सदा। -शारदा तिलक अर्थात् देवता का मस्तक सदैव पुष्प से सुशोभित रहना चाहिए। ‘. थुष्पैदेवां प्रसीदन्ति पुष्पै: देवाशएच संस्थिताः न रलर्न सुवर्णन न वित्तेन च भूरिणा तथा प्रसादमायाति यथा पुष्पैर्जनार्दन। -विष्णुनारदीय व धर्मोत्तरपुराण अर्थात् देवता लोग रल, सुवर्ण, भूरि द्रव्य, व्रत तपस्या एंव अन्य किसी भी साधनों से उतना प्रसन्न नहीं होते, जितना कि पुष्प चढ़ाने से होते हैं। भारतीय संस्कृति में पुष्प का उच्च स्थान है। देवी देवताओं और भगवान् पर आरती, व्रत, उपवास, या पर्वो पर पुष्प चढ़ाए जाते हैं। धार्मिकअनुष्ठान, संस्कार, सामाजिक व पारिवारिक कार्यों को बिना पुष्प के अधूरा समझा जाता है। पुष्पों की सुगंध से देवता प्रसन्न होते हें। सुंदरता के प्रतीक पुष्प हमारे जीवन में उल्लास, उमंग और प्रसन्नता के प्रतीक हें।
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