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विन्दायक जी की कहानी – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

विन्दायक जी की कहानी 

एक बार बिन्दायक जी महाराज एक चुटकी में चावल और एक में  दूध लेकर घूम रहे थे कि कोई मेरी खीर बना दे। एक बुढिया माई बोली कि ला में खोर बना दूं। वह एक कटोरी ले आई। तब बिन्दायक जी बाले कि बुढ़िया माई कटोरी क्‍यों लाई है? भगोना लाकर चढ़ा दे। तब बुढ़िया माई बोली कि इतने बड़े भगोने का क्या करेगा, कटोरी ही बहुत है। बिन्दायक जी ने कहा कि तू चढ़ाकर तो देख। बुढ़िया माई ने भगोना चढ़ा दिया और चढ़ाते ही दूध से भर गया। फिर बिन्दायक जी ने कहा में बाहर जाकर आता हूं तू खीर बनाकर रखियो। खीर बनकर तैयार हो गई। परन्तु विन्दायक जी महाराज नहीं आए तो बुढ़िया माई का मन ललचा गया ओर वह दरवाजा बंद करके खीर खाने लगी ओर बोली कि बिन्दायक जी महाराज भोग लगाओ और खीर खाने लगी। इतने में विन्दायक जी आए और बोले-बुढिया माई, खीर बना ली? बुढिया बोली-हां, आकर जीम लो। बिन्दायक जी बोले-मैंने तो जीम लिया। जब तू जीमने लगी तभी मेंने भोग लिया था। तब बुढिया माई बोली कि तुमने तो मेरा परदा हटा दिया परन्तु किसी और का परदा मत हटाना। तब बिन्दायक जी महाराज ने खूब धन-दौलत भर दिया। हे विन्दायक जी महाराज जैसा बुढ़िया माई को दिया वैसा कहते सुनते अपने सब परिवार का देना।
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