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सत्यवान की कहानी – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

सत्यवान की कहानी 

एक जगह की बात है वहां दादी-पोती रहती थीं वह रोज सत्यवान कहानी कहती थीं। लोटे में जल भरकर, फूल रखकर कहानी कहा करती थीं। सत्यवान का नाम लेकर अर्ध्य देती थीं। जब वह पोती ससुराल जाने लगी तो उसने खाली लोटे में जल भरके, फूल रखकर दे दिये ओर कुछ भी नहीं दिया। वह रास्ते में चलती जाये और सोचती जाये कि ससुराल में सब पूछेंगे कि तू क्‍या लाई तो में क्या बताऊँगी। तो सत्य भगवान ने सोचा कि इसका कष्ट मिटाना चाहिए। बाद में वह रास्ते में कहानी कहकर अर्ध्य देती जाये तो हीरे-मोतियों-गहनों का भंडार हो गया। वह खूब पहन-ओढ़्कर ससुराल पहुंची तो ससुर ने कहा कि बहूत तो बहुत बडे घर की आई है हमारे यहां! बहुत सारी धन दोलत लाई है! सास ने कहा कि पडोसन के यहां से मूंग, चावल उधार ले आओ और बहू के लिये खाना बनाओ।
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 फिर बहू ने कहा-मेरे लोटे में से जल लेकर रसोई बनाओ। लोटे में जल लेकर रसोई बनाई तो भगोना भर गया, तरह-तरह की मिठाइयाँ उसमें भरी थीं। तो सास ने कहा-बहू खाना खा ले। वह बोली कि ससुर जी ने नहीं खाया, आपने नहीं खाया, पति ने नहीं खाया इसलिये में केसे खा सकती हूँ। ओर मेरा सत्यवान की कहानी का नियम है उसने कहानी कही। सबने सुनी तो वहां धन का ढेर लग गया। सास सत्य भगवान का प्रसाद बांटने -लगी तो पड़ोसन ने कहा-अभी तो मूंग, चावल उधार ले गई थी और इतनी देर में इतना सारा धन कहां से आयाग + उसने कहा-मेरी बहू सत्य भगवान की कहानी कहती है, उन्हीं सत्य भगवान ने हमें इतना कुछ दिया है। है सत्य भगवान जैसा साहूकार की बहू को धन दिया वैसा सब किसी को देना जो सत्यवान की कथा कहता और सुनता को देना।
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