कार्तिक की कहानी (4)
एक बुढ़िया थी। वह कार्तिक नहाने जा रही थी, तो उसके बेटे ने अपनी पत्नी से कहा कि माँ के लिय तीस लड्डू बना दो और कुछ खाने का सामान भी बाँध दो ताकि पूजा-पाठ करके माँ कुछ खा-पी सके। तब बहू ने गुस्से में भरकर तीस लड॒डू बाँध दिये और बुढिया कार्तिक नहाने के लिये घर से निकल गयी। नदी किनारे कुटिया बनाकर रहने लगी। बढ़िया रोज सुबह उठकर नहा-धोकर पूजा आदि करके जब लड्डू खाने तभी हनुमान जी बन्दर का रूप धारण करके उसके सामन प्रकट हो जाते. तब बुढिया खुश होकर बंदर को लड॒डू खिला देती। इस प्रकार वह राज आकर बुढिया के लड्डू खा जाता।
कार्तिक का महीना समाप्त होने के उपरात हनुमानजी प्रकट हुए और बुढ़िया की कुटिया महल बन गई। उस महल में धन-दोलत व अन्न के भंडार भर दिये बुढिया निरोगी हो गई और वह बहुत धूम-धाम से अपने बेटे के पास धन-दौलत लकर गई। तब वह बहू कहने लगी कि अगले कार्तिक में में भी अपनी माँ को नहलाऊगी। अगले साल जब कार्तिक का महीना आया, उसने खुब सारा घी और मेवा डालकर लड्डू बनाये। अपनी माँ को तीस लड्डू बाँध दिये ओर माँ कार्तिक नहाने गई। रोज सुबह-सुबह उठकर लड्डू खाने बैठ जाती तब हनुमानजी बंदर के रूप में आकर उसके सामने बेठ जाते तो वह पत्थर मारकर कहती, कि मेरा ही पेट नहीं भरा, तो तुम्हें कहां दे दूं। इसी प्रकार उसका रोज का यही क्रम था। कार्तिक का महीना समाप्त हुआ तो हनुमानजी फिर से प्रकट हुए और उसकी कुटिया को कचरे का ढेर बना दिया, और बुढिया डूकर बन गई।
उसकी बेटी अपने पति से कहने लगी कि कार्तिक का महीना समाप्त हो गया है मेरी माँ को बैंड-बाजे के साथ लेकर आओ। जब वह अपनी सास को लेने नदी किनारे गया तो देखता ही रह गया। न तो वहां सास हे और न ही कुटिया। कुटिया की जगह कचरे का ढेर है। उस ढेर पर बुढिया डूकर बनकर घूम रही हे। तब हनुमानजी प्रकट हुए और कहा कि बेटा! तुम्हारी माँ ने सच्चे मन से कार्तिक नहाया था, पूजा-पाठ करती थी; इसलिये तुम्हारी माँ पर कार्तिक देवता बरसे और यह बुढिया पापी मन से यहां रहती थी। इसने कार्तिक के महीने में बेटी के घर का अन्न ग्रहण किया है, इसलिये कार्तिक देवता इस पर रुष्ट हो गये और यह डूकर बन गई। कार्तिक देवता जैसे माँ पर बरसे वेसे सब पर बरसें।