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जीवितपुत्रिका व्रत की कथा – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

जीवितपुत्रिका व्रत की कथा 

बहुत पहले भगवान कृष्ण द्वारिकापुरी में रहते थे, उस समय एक ब्राह्मण भी द्वारिका में रहता था। उसके सात पुत्र काल के ग्रास बचपन में ही बन चुके थे। इस दशा को देखकर वह ब्राह्मण बहुत दुखी था। एक दिन वह भगवान कृष्ण के पास गया और बोला-भगवन्‌! आपके राज्य में आपकी कृपा से मेरे सात पुत्र हुए, परन्तु उनमें से कोई भी जीवित नहीं बचा, प्रभु आप कृप्या मुझे इसका कारण बतायें? 
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भगवन बोले-हे ब्राह्मण! सुनो, इस बार तुम्हारे जो पुत्र होगा उसकी उम्र तीन वर्ष होगी। उसकी उम्र बढ़ाने के लिये तुम भगवान सूर्य नारायण की पूजा करो ओर पुत्रजीवी व्रत को धारण करो। तुम्हारे पुत्र की आयु बढ़ जायेगी। ब्राह्मण ने वैसा ही किया। जब वह सपरिवार हाथ जोड़ ओर खडे होकर इस प्रकार विनती कर ही रहा था
सूर्यदेव विनती सुनो, पाऊं दुख अपार। 
उम्र बढ़ाओ पुत्र की कहता बारम्बार॥ 
उनकी प्रार्थना सुनकर सूर्य देव का रथ वहीं रुक गया। ब्राह्मण की विनती से प्रसन्‍न होकर सूर्य ने अपने गले से एक माला ब्राह्मण-पुत्र के गले में डाल दी और आगे चल दिये। थोड़ी देर में यमराज उस ब्राह्मण पुत्र के प्राण लेने आ गये।   यमराज को देखकर ब्राह्मण ओर ब्राह्मणी कृष्ण जी को झूठा कहने लगे। भगवान कृष्ण अपना अनादर जानकर तुरन्त ही सुदर्शन चक्र लेकर आ गये ओर बोले-“इस माला को यमराज के ऊपर डाल दो।” यह सुनकर ब्राह्मण ने माला उतारी तो यमराज डर कर भाग गये। परन्तु यमराज की छाया रह गयी। उस फूल की माला को छाया के ऊपर फेंकने से वह छाया शनि के रूप में आकर भगवान जी की प्रार्थना करने लगी। भगवान कृष्ण को शनि के ऊपर दया आ गई और पीपल के वृक्ष पर रहने के लिये कहा। तब से शनि की छाया पीपल के वृक्ष पर निवास करने लगी। 
इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने उस ब्राह्मण के पुत्र की उम्र बढ़ा दी।
इसलिये भगवन्‌! जिस प्रकार प्रकार ब्राह्मण के लड़के की उम्र बढ़ायी, उसी प्रकार सभी की उम्र बढाना। 
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