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दूबड़ी आठें की कथा – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

दूबड़ी आठें की कथा 

प्राचीन काल में एक साहूकार रहता था। उसके सात बेटे थे। वह अपने जिस बेटे का विवाह करता था उसका वही बेटा मृत्यु को प्राप्त हो जाता इसी तरह उसके छ: पुत्र मृत्यु को प्राप्त हो गये। केवल सबसे छोटे पुत्र शेष रह गया। साहूकार इस बात से बहुत ही दुखी रहने लगा। कुछ समय के बाद उसके सबसे छोटे पुत्र के विवाह की चर्चा हुई और उसका रिश्ता पक्का हो गया। विवाह की तिथि तय हो गई।

लड़के के विवाह में शामिल होने के लिए जब लड़के की बुआ आ रही थी तो रास्ते में उसे एक बुढिया चक्की पीसती हुई मिली। लडके की बुआ ने उस बुढ़िया को सारी बात कह डाली। इस पर बुढ़िया बोली-”वह लड़का तो घर से निकलते ही दरवाजे से दबकर मर जायेगा, अगर इससे बचा तो रास्ते में बारात रुकने की जगह पर पेड गिरने से मर जायेगा। अगर यहां भी बच गया तो ससुराल में दरवाजा गिरने से मर जायेगा। अगर यहां से भी बचा तो विवाह मंडप में सातवीं भांवर पर सर्प के काटने से मर जायेगा।’” यह सुनकर लड़के की बुआ बोली-“हे माता! यदि बचने का कोई उपाय हो तो बताओ।”” बुढिया बोली-‘बचने का उपाय तो है पर है कठिन। इस पर बुआ बोली-“’कृपया आप बताइये, आप बतायेंगी तो हम उपाय अवश्य ही करेंगे। आगे ईश्वर की इच्छा। पर प्रयास तो करना ही चाहिए।’” बुढिया बोली-““जब लड़के की बारात विदा हो तो उसे पीछ की दीवार को फोड़कर निकालना। किसी वृक्ष के नीचे बारात को न रुकने देना। ह ससुराल में भी पीछे से दरवाजा फुड्वाकर जयमाला करवाना। भाँवचर के समय एक कटोरी में दूध रख लेना। एक ताँत का फाँसया बनाकर रख लेना। जब साँप आकर दूध पी ले तो उसे फाँसे में फसाकर बाँध लेना। | बाद सर्पिणी आयेगी। वह साँप को छोड़ने के लिये कहेगी तब अपने मृत छः भतीजों को मांगना। वह पहले मरे हुए तुम्हारे छः भतीजों को जीवित कर देगी। इस बात को किसी से न कहना क्‍योंकि ऐसा करने से कहने वाले की और सुनने वाले दोनों की मृत्यु निश्चित है। इससे लड़का भी नहीं बचेगा वह भी मर जायेगा।”” सारी बातें बताकर बुढिया ने अपना नाम दूबड़ी बताया और चली गई। सारी बातें सुनकर लड़के की बुआ आई। जब बाराज जाने लगी तो लड़के की बुआ रास्ता रोककर खड़ी हो गई ओर बोली-“’मेरे भतीजे को दीवार फोड़कर पीछे से निकालो।”” ऐसा ही किया गया। लड़का सकुशल निकल गया। उसके घर से बाहर आते ही मकान के आगे का पुराना दरवाजा भरभराकर गिर पड़ा। यह देखकर सब कहने लगे-”बुआ ने बड़ा अच्छा किया। लड़के को बचा लिया।” बुआ भी बारात के साथ जाने लगी तो सबने मना किया और कहा कि महिलाएं बारात के साथ नहीं जाती हैं। पर बुआ ने किसी की बात नहीं मानीं, वह भी बारात के साथ गई। मार्ग में जब बारात एक वृक्ष के नीचे रुकने लगी तो बुआ ने “सबको रोका तथा लड़के को वृक्ष के नीचे न बेठाकर धूप में बेठा दिया। लड़के के धूप में बैठते ही वृक्ष भी चरमराकर गिर गया। यह देखकर सारे बाराती बुआ की प्रशंसा करते नहीं थक रहे थे। पूरी बारात बुआ की समझदारी से काफी प्रभावित थी। इसलिये किसी ने भी उसकी बात का कोई विरोध नहीं किया। जब बारात ससुराल पहुंची तो बुआ ने लड़के तथा बारात का गृह-प्रवेश पिछले दरवाजे से रवाया। ससुगल के घर में पिछले दरवाजे से लड़के तथा बारात के प्रवेश करते ही आगे का दरवाजा अपने आप भरभराकर गिरगया। इस पर सब आश्चर्य करने लगे और आपस में कहने लगे कि यह सब बातें बुआ को किसने बताई। जब लड़के की. भाँवरें पड़ने लगीं तो बुआ ने कटोरी में कच्चा दूध मंगाकर तथा ताँत का फासा बनाकर रख लिया। जब लड़के की सातवीं भाँवर पड़ने लगी तभी सर्प आया। बुआ ने उसके आगे दूध कर दिया। जब साँप दूध पीने लगा तो बुआ ने तात के फासे में फंसाकर साँप को बाँध लिया। इस पर सर्पिणी ने उसके भतीजे जीवित कर दिये ओर सर्प को अपने साथ लेकर चली गई। इस प्रकार साहूकार के सातों पुत्र जीवित हो गये। बागत सकुशल घर वापस आ गई। साहूकार के मृत बेटों को जीवित करने वाली उस अज्ञात दूबड़ी नाम की वृद्ध का नाम दूबड़ी आठें पड़ गया। हे दूबडी माता! जैसे तुमने साहूकार की बहन के सातों भतीजे लौटाये, ऐसे ही सबको रक्षा करना।
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