जमाई की चतुराई
एक बार की बात है कि एक जमाईं अपनी ससुराल में गया हुआ था। जमाईं राजा से पूछा गया कि आपके लिए भोजन में कया बनाया ज़ाए?
जमाई राजा ने उत्तर दिया – आज तो खिचड़ी बननी चाहिए क्योंकि पकवान खाते-खाते कई दिन हो गये हैं। पेट में कुछ कब्ज सा प्रतीत हो रहा है। भोजन के समय उनका साला भी वहाँ पर आ गया।
साला बोला–माँ! मैं और जीजाजी आज एक ही थाल में भोजन करेंगे। माँ ने साले बहनोई दोनों के लिए एक ही थाल में , खिचड़ी परोस दी। अचानक खिचड़ी का थाल इस प्रकार रखा गया कि खिचड़ी का घी जमाई की तरफ बहने लगा था तथा साले की तरफ घी नहीं रहा था। जमाई राजा की सास बड़ी चतुर थी। वह चाह रही थी कि खिचड़ी का घी बेटे की तरफ बहने लगे। बहुत देर सोचने के बाद उसने जमाई राजा से कहा – देखो लालाजी! तुम्हारी माँ ने मेरी बेटी को बहुत दुख दिया है।
अब तो उसने जमाई राजा की माँ की शिकायतों की झड़ी लगाते हुए खिचड़ी में एक लाइन बनाकर कहा कि तुमसे खुलासा करके कहती हूँ कि तुम अलग हो जाओ। लाइन खीचते ही थाली में खिचड़ी का घी बेटे की ओर बहने लगा। जमाई राजा सासुजी की करतूत को समझ गये। उसने हाथ से सारी खिचड़ी को फैलाते हुए कहा तुम्हारी बेटी ने मेरा सब चौपट कर दिया।