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संकरात ( संक्रान्ति ) – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

संकरात ( संक्रान्ति )

संक्राति का पर्व पौष मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को जब सूर्य मकर शशि में प्रविष्ट होता है। ये 14 जनवरी को मनाया जाता है। सवरे हलवा पूरी या खीर बनाते हैं और खिचड़ी,रेवडी,रुपये (मूंग की दाल+चावल मिलाकर) मिनशकर ब्राह्मण को देते हैं। साथ में सामर्थ्य होने पर कोई भी 14 चीजें मिनशकर गरीबों को बांट देते हैं। संकरात के 360 प्रकार क नेग होते हैं। जिन लड़कियों की इसी वर्ष शादी होती है। उस लड़की से जो भी नियम कराया जाता है। दूसरे वर्ष उस लड़की से उद्यापन करवाकर उसके मायके से ससुराल में विशेष बायना भी भेजा जाता है। इस बायने में मावे अर्थात्‌ खोए के तीन सौ साठ बए अर्थात्‌ पेडे या लड्डू और सास ससुर के कपडे, चांदी की दीया-बत्ती व चिड़िया, बाजरा, चावल ओर सामर्थ्य होने पर पूरे परिवार के लिए कपड़े भी भेजे जाते हैं। संकरात पर लड़कियों के यहां सामर्थ्यानुसार प्रतिवर्ष लड़की, दामाद व बच्चां के गर्म-ठंडे वस्त्र, फल-मिठाई, गज्जक व रेवड़ी ओर दामाद के टीके का लिफाफा, लड़की व बच्चों के रूपये भेजे जाते हैं। बहुएं ससुर जी को जगाने ओर कपडे पहनाने व गुड की भेली, फल रूपये देवें व ओढ़ने बिछाने के कपडे देवें, सास को सीढ़ी चढाने-उतारने तथा ननद-ननदंऊ, जेठजेठानी को बल्त्र देवें, देवर को बादाम से मनाने आदि कार्य भी संकरात के दिन करती है। आज के दिन से एक वर्ष तक चिडियों को एक मुटठी बाजरा डालना, जमादारनी को एक टोकरा व झाड़ू देकर एक वर्ष तक घर के बाहर झाड़ू लगवाना और अगली संकरात पर साड़ी ब्लाउज और रूपये देना, घर के दरवाजे के बाहर दीया जलाना, अथवा एक माह तक एक थाल प्रतिदिन ब्राह्मण को दान देना आदि नियन भी कुछ महिलाएं धारण करती हैं।
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