श्रोता या सोता
एक दिन सेठानी के विशेष आग्रह पर सेठ जी कथा सुनने चले गये। वहाँ पहुँच कर सेठ जी कथा वाचक पंडितजी
की चौकी के पास बैठ गये। सेठ जी कथा सुनते-सुनते उंघने लगे। नींद में उन्हें सपना दिखाई दिया कि कोई ग्राहक कपड़ा खरीदने आया है। लालाजी के हाथों पंडितजी का दुपट्टा आ गया तो वे उसे फाड़े लगे।
पंडिजी ने लालाजी से कहा – रे भाई! तुम यह क्या ! कर रहे हो? मेरा दुपट्टा क्यों फाड़ रहे हो? पंडितजी की आवाज सुनकर लालाजी की नींद खुल गई।
लालाजी बोले–पंडितजी! क्षमा करना मुझे जरा नींद आ गई थी। सवपन में दुकान पर बैठा कपड़ा नाप कर फाड़ कर दे रहा था। पंडितजी सोचने लगे कि अगर ऐसे ही श्रोता दस पांच आ जायें तो हम तो मर जायेंगे।