श्राद्ध
श्राद्ध का आरंभ भाद्रपद की पूर्णिमा और आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से होता है और आश्विन मास की अमावस्या तक “पितृपक्ष’ कहलाता है। इस पक्ष में मृत पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है।
श्राद्ध करने का अधिकार ज्येष्ठ पुत्र अथवा नाती को होता है। पुरुष के श्राद्ध में ब्राह्मण को तथा ओरत के श्राद्ध में ब्राह्यणी को भोजन कराते हैं। भोजन में खीर-पूरी होती है। भोजन कराने के बाद दक्षिणा दी जाती है। पितृपक्ष में पितरों की मरने की तिथि को ही उनका श्राद्ध किया जाता है। गया में श्राद्ध करने का बड़ा महत्त्व माना गया है। पितृपक्ष में देवताओं को जले देने के पश्चात् मृतकों का नामोच्चारण करके उन्हें भी जल देना चाहिए। बुजुर्गों की कल तिथि के दिन श्रद्धापूर्वक तर्पण ओर ब्राह्मण को भोजन करना ही श्राद्ध है।
तर्पण : पान, सुपारी, काला तिल, जो, गेहूं, चंदन, जनेऊ, तुलसी, पुष्प, दूब, कच्चा दूध, पानी आदि सामग्री पूजा हेतु एकत्रित कर लेनी चाहिये। पूजा का स्थान गाय के गोबर से साफ कर लेना चाहिये। मृत पितृ के निमित्त और उनकी तिथि स्मरण करके नेवेद्य निकाल देना चाहिये। एक थाली में गाय का (पंच ग्रास) तथा एक थाली में ब्राह्मण भोजन निकाले।
श्राद्ध संकल्प :
आज मिमि………………वार………………मास «(कृष्ण पक्ष/शुक्ल पक्षे) पक्षे संयुक्त संवत्सरे (पितृ/मातृ या दादा/दादी) की पुण्य श्राद्ध तिथि पर उनके ब्रह्मलोक में स्वर्ग का आनन्द एवं सुख की प्राप्ति हेतु धर्मगाज की प्रसन्नता के लिये काक बलि, मार्ग देवता को प्रसन्नता के लिये खान (कुत्ता) बलि, वैतरणी नदी के पार कराने हेतु गौग्रास बलि, कीट पतंग योनि की तृप्ती व अतिथि देवता हेतु पंच ग्रास बलि (अमुक) के निमित्त है। उनकी (माता-पिता, दादा-दादी) भूख प्यास का दोष शान्त हो तथा उन्हें आनन्द की प्राप्ति होवे। हमारे वंश व धन की वृद्धि होवे।
(ऐसा बोलते हुये हाथ में जल, जौ, तिल दक्षिणा रखे हुए पांचों ग्रास पर घुमाकर दक्षिण की और मुंह करके छोड दें) इसके अतिरिक्त ब्राह्मण भोजन के निमित्त जो थाली में प्रसाद रखा है उस पर घुमाकर जन छोड़े और कहे इससे हमारे ……………….( माता-पिता, दादा-दादी) की तृप्ति होवे प्रसन्नता होवे।