भैया पाँचें
श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी को भैया पाँचे मनाई जाती है। इस दिन सुबह जल्दी ही सिर सहित स्नान करते हैं। और पहले दिन एक थाली में रात को भीगे हुए चने, मोठ, पैसे, हल्दी, कच्चा दूध मिलाकर पानी भरा हुआ लोटा लेकर केक्टस के पेड़ पर जाते हें ओर एक टहनी पर जल चढ़ाकर हल्दी से टीका करते हैं ओर सबके माथे पर हल्दी से टीका लगाते हैं। लोटे पर भी मौली बांधकर सतिया बनायें। झाड़ी की टहनी के काटों पर मोठ-चने बोते हैं फिर अपनी साड़ी के पफल्ले से अपने माथे व कीकर की टहनी को सात बार छूकर कहते हैं ”झाड़ झड़े मेरा बीर बढे”।
इसके बाद कहानी कहनी और सुननी चाहिए। कहानी सुनते समय हाथ में मोठ-चने लेकर छीलते रहते हैं। कहानी सुनने के बाद छिले दर मोठ चने वही पर चढ़ा देते हैं। फिर गणेश जी की कहानी कहते हैं। कहानी सुनने के बाद सूरज भगवान को जल चढ़ाते हैं और थोड़ा सा जल बचा ले हें।
घर के अंदर आने से पहले दरवाजे पर दोनों तरफ जल डालकः हल्दी से सतिया बनाते हें। घर आकर एक अलग लोटे में पानी लेक मोठ-चने, फल-मिठाई, रुपये, एक थाली में रखकर सीदा निकालते है यह सीदा सास-जिठानी-ननद को पांव छूकर देते हें। यह पूजा कुंवर लड़कियां भी करती हैं ओर छोटी बहनों को सीदा देती हैं।
उद्यापन
जिन लड़कियों की इसी वर्ष शादी होती है वे पहले वर्ष मायके में ही भैषे पांचे मनाती हैं और चुननी ओढ़कर सीदा मिनसकर एक बडे ढक््कन वाले भगोने में मोठ-चने (भीगे हुए) भरकर उन पर रुपये, फल-मिठाई औ साड़ी-ब्लाऊज रखकर सीदे के साथ ससुराल जाकर सास-ननद-जिठानी को पाँव छूकर यह सीदा देती हें।