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सच्चे ज्ञान की प्राप्ती Attainment of true knowledge

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इस तरह गौतम बुद्ध को हुई सच्‍चे ज्ञान की प्राप्ति

Attainment of true knowledge

गौतम बुद्ध एक आध्यात्मिक नेता थे जिनकी शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म की स्थापना की गई थी. माना जाता है कि गौतम बुद्ध चौथी से छठीं शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान पूर्वी भारत- नेपाल में एक राजकुमार के रूप में जन्में, उन्होंने विलासिता की गोद में अपना बचपन बिताया.

उन्होंने कम उम्र में अपनी मां को खो दिया और उनके सहृदय पिता ने अपने जवान बेटे को दुनिया के दुख से दूर रखने के लिए अपनी पूरी कोशिश की. जब वो एक छोटे बच्चे थे तो कुछ बुद्धिमान विद्वानों ने भविष्यवाणी की है कि थी वह या तो एक महान राजा या एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक नेता बनेंगे.

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उनके पिता ने आशा व्यक्त की थी कि उनके बेटे को एक दिन एक महान राजा बनाया जाए. राजकुमार को धार्मिक ज्ञान के सभी रूपों से दूर रखा गया और बुढ़ापा, बीमारी और मृत्यु की अवधारणाओं के बारे में उन्हें कोई भी विचार सुनने नहीं दिया जाता था।

एक बार एक रथ पर शहर के दर्शन को निकले राजकुमार गौतम ने यात्रा के मध्य में एक बूढ़े आदमी, एक रोगग्रस्त व्यक्ति और एक लाश को देख लिया. दुनिया में इतने दुखों के बारे में इस नए ज्ञान ने उनके मन के भीतर कई सवालों को जन्म दे दिया.इस तरह उनका मन विचलित हो गया और जल्द ही राजकुमार ने अपने सारे सांसारिक चीज़ो को त्याग दिया और स्वयं की खोज के लिए यात्रा में निकल पड़े. अंत में कठोर चिंतन और ध्यान के वर्षों के बाद उन्हें प्रबुद्धता प्राप्त हुई और वे बुद्ध बन गए जिसका अर्थ है ‘जागा हुआ “या” प्रबुद्ध इंसान.गौतम बुद्ध के प्रारंभिक जीवन के बारे में कई रहस्य हैं. कहा जाता है कि 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में वे लुम्बिनी (आज का आधुनिक नेपाल) में पैदा हुए और उनका जन्म का नाम सिद्धार्थ गौतम था और वह एक राजकुमार के रूप में पैदा हुए थे. उनके पिता शुद्धोधन शाक्य राज्य के राजा थे और उनकी मां रानी माया थी और उनके जन्म के बाद शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हो गई थी.

जब सिद्धार्थ एक छोटा बच्चा था, भविष्यवाणी की गई कि लड़का या तो एक महान राजा या सैन्य नेता होगा या वह एक महान आध्यात्मिक नेता होगा. उनके पिता सिद्धार्थ को एक महान राजा बनाना चाहते थे. इसलिए उन्हने उसे विलासिता की गोद में उठाया और किसी भी तरह के धार्मिक ज्ञान से उसे दूर रखा.

उनके पिता को मानव कठिनाइयों और दुखों के रूप में ये डर था कि इस तरह के ज्ञान अध्यात्म की ओर सिद्धार्थ प्रेरित हो सकता था. उन्होंने यह सुनिश्चित किया की उनका बेटा बुढ़ापे, मृत्यु की तरह प्रक्रियाओं से दूर रहे.

अपने जीवन को अपने महल तक ही सीमित रखने के बाद युवा सिद्धार्थ ने उत्सुक होकर एक दिन अपने सारथी से कहा कि उसे शहर के एक दौरे पर ले चले. शहर के मध्य में यात्रा करते समय उन्होंने एक अपंग आदमी, एक बीमार आदमी, एक मरे हुए आदमी को देख लिया।

बीमारी, बुढ़ापा, मृत्यु, और तप की अवधारणाओं के बारे में सिद्धार्थ को कोई पूर्व जानकारी नहीं थी, उनके सारथी ने उन्हें बीमारी ,उम्र बढ़ने और मौत के बारे में बताया कि ये सब जीवन का अभिन्न अंग थे.
मानव कष्टों के बारे में सवालों के जवाब की तलाश के लिए सिद्धार्थ ने अपने सांसारिक जीवन को त्याग कर स्वयं की खोज में जाने का फैसला किया. वह परम सत्य की तलाश में निकल पड़े.

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