मोहिनी एकादशी
मोहिनी एकादशी वेशाख मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनायी जाती है। इसी दिन भगवान पुरुषोत्तम (राम) की पूजा की जाती है। भगवान की प्रतिमा को स्नानादि से शुद्ध कराकर श्वेत वस्त्र पहनाये जाते हैं। इसके बाद प्रतिमा को किसी ऊंचे स्थान पर रखकर धूप, दीप से आरती उतारी जाती है आरती के बाद मीठे फलों द्वारा भोग लगाकर सभी श्रद्धालुजन में प्रसाद के रूप में बाँठ जाता है। इसके बाद ब्राह्मण को भोजन तथा दान-दक्षिणा देनी चाहिए। रात्रि में भगवान का कीर्तन करके मूर्ति के समीप ही शयन करना चाहिए। एकादशी ब्रत के प्रभाव से निंदित कार्यो से छुटकारा मिला जाता हे।
मोहनी एकादशी व्रत की कथा
सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नाम की नगरी स्थित थी। उसमें धृतनाभ नाम राजा राज्य किया करता था। उसके राज्य में एक धनवान वेश्य रहता था। वह बड़ा धर्मात्मा ओर विष्णु भगवान का अनन्य भक्त था। उसके पाँच पुत्र थे। बड़ा पुत्र महापापी था। जुआ खेलना मद्यपान करना, वेश्याओं का संग आदि नीच कर्म करने वाला था। उसके माता-पिता ने उसे कुछ धन, वस्त्राभूषण देकर घर से निकाल दिया।