योगिनी एकादशी
योगिनी एकादशी का ब्रत आषाढ मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता हे। इस ब्रत को रखकर भगवान नारायण की मूर्ति को स्नान कराके भोग लगाते हुए पुष्प, धूप, दीप से आरती करनी चाहिए। गरीब ब्राह्मणों को दान देना परम श्रेयस्कर हे। इस एकादशी के प्रभाव से पीपल का वृक्ष काटने से उत्पन्न पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त में स्वर्गलाक की प्राप्ति होती है।
एक समय की बात हे जब अल्कापुरी में कुबेर के यहाँ एक हेम नाम का माली निवास करता था। वह भगवान शंकर की पूजा के लिये नित्य प्रति मानसरोवर से फूल लाया करता था। एक दिन वह कामोन्मत्त होकर अपनी स्त्री के साथ स्वच्छन्द विहार करने के कारण फूल लाने में देरी कर बेठा तथा कुबेर के दरबार में कुछ देरी से पहुंचा।
कुबेर ने क्रोध में आकर उसे श्राप देकर कोढ़ी बना दिया। कोढ़ी के रूप में जब वह मार्कण्डेय ऋषि के पास पहुंचा तब उन्होंने योगिनी एकादशी व्रत रखने का नियम बताया। ब्रत के प्रभाव से उसका कोढ़ समाप्त हो गया तथा दिव्य शरीर प्राप्त है अन्त में उसने स्थर्गलोक को पाया।