औगद्वादस की कथा
एक राजा के सात बेटे थे और एक पोता था। एक दिन रानी ने अपनी बहू से कहा क्रि ‘धान-धानडे’ को संभाल कर रखना। धान-धानड़े उनकी गाय के बछड़े का नाम था। सास के समझाने के बाद भी बहू ने बछड़े का .ध्यान नहीं रखा। राजा के सभी कुएँ, तालाब सूख गये तब रानी ने वहू को पीहर भेज दिया और उसका बेटा अपने ही पास रख लिया। एक साल तक उनके तालाब ओर कुओं में पानी नहीं आया, तब राजा ने पंडितों को बुलवाकर पूछा कि इनमें पानी किस प्रकार आएगा तो पंडित बोले कि बड़े बेटे या इकलोते पोते की बलि देने से पानी आ जायेगा। तब राजा ने अपने इकलौते पोते की बलि दे दी। बलि देते ही कुए, तालाब पानी से भर गए। रानी ने बहू को भी पीहर से वापिस बुला लिया। उसके बाद औगद्वादस आई तो सब बोले कि अपने तालाब पर ही धोक मारने चलेंगे ओर सबने मिलकर खूब गाजे बाजे के साथ तालाब पर ओगद्वादस की पूजा की। पूजा के बाद बहू ने रानी से कहा कि अब तो अपने पोते को भी बुला लो। तब रानी ने कहा कि वह बाहर खेल रहा है तुम्हीं उसे आवाज लगाकर बुला लो। बहू के आवाज लगाने पर राजा के द्वारा बलि दिया हुआ पोता तालाब में से बाहर आ गया। तालाब से बाहर आते देखकर सास बहू एक दूसरे को देखने लगीं ओर बहू के बाहर खेलने वाली बात पूछने पर सास ने बलि वाली सारी बात बताकर बहू से कहा
कि यह तेरे ही भाग्य का है। औगद्वादस माता ने सत्त रखकर तेग बेटा वापिस दे दिया। अपना पोता वापिस पाकर राजा ने सारे नगर में ढिढोग पिटवा दिया कि सब बेटों की मां को औगद्वादम करनी चाहिए। बेट हांने का, बेटे के ब्याह का उद्यापन करना है औगद्वादस माता! जैसा फल पीछे बहू को दिया वैसा फल सब किसी को मिले। कहने वाले को, मुनने वाले को, हुंकारा भरने वाले को, सारे परिवार को मिले। इस कहानी के बाद बिन्दायक बाबा की कहानी भी कह सुन लेते हैं।