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धर्मराज जी की कहानी – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

धर्मराज जी की कहानी 

एक बुढ़िया माई थी। वह व्रत नियम बहुत रखती थी। एक दिन भगवान के घर से यमदूत लेने आए। बुढ़िया माई यमदूत के साथ चली गई। आगे गहरी नदी बह रही थी। बुढ़िया माई डूबने लगी तब यमराजजी ने पूछा-माई गायदान की हुई है क्या? तब बुढ़िया माई ने मन में गाय माता का ध्यान किया तो गाय माता उपस्थित हो गई। गाय की पूछ पकड़कर बुढ़िया माई नदी पार हो गई। आगे गई तो काले कुत्ते खाने दौडे, तब यमराजजी ने पूछा-कुत्ते को रोटी दी है क्‍या? बुढ़िया माई ने मन में कूत्ते का ध्यान किया तो कुत्ते चले गए। आगे चली तो काले कौए बुढ़िया माई को चोंच मारने लगे। तब यमराजजी ने कहा कि ब्राह्मण की बेटी को सिर में तेल लगाने को दिया है कि नहीं? 
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बुढ़िया माई ने ब्राह्मण की बेटी को याद किया तो कौए ने चोंच मारना छोड़ दिया। आगे गई तो पैरों में कांटे चुभने लगे। तब यमराजजी ने कहा कि चप्पल दान की है क्या? बुढ़िया माई ने याद किया तो चप्पल पैरों में आ गई। आगे चली तो चित्रगुप्तजी ने यमराजजी से कहा-आप किसको ले आए हो? तब यमराजजी ने कहा कि बुढिया माई ने दान पुण्य तो बहुत किया है, पर धर्मराजजी का कुछ नहीं किया, इसलिए आगे के द्वार बंद हैं। तब बुढ़िया माई बोली कि मुझे सात दिनों के लिए धरती पर जाने की आज्ञा दो। सात दिनों तक कहानी सुनकर उद्यापन करने के बाद वापस आ जाऊंगी। बुढिया माई वापस धरती पर आ गई पूरे गांव में खबर फेल गई कि बुढ़िया माई भूतनी का रूप धारण करके आ गई। वह जब अपने घर को गई तो बेटे बहू ने भूतनी समझकर घर के द्वार बंद कर दिए। तब उसने अपने बेटे और बहु को कहा कि मैं भूतनी नहीं हूं। मैं तो धर्मराजजी के कहने के अनुसार वापस आई हूं। मैं नियमानुसार-प्रत्येक दिन धर्मराजजी की कहानी सुनकर, उद्यापन करके वापस परलोक चली जाऊंगी। यह सुनकर बेटे ने उद्यापन की पूजा की सभी सामग्री एकत्रित कर दी। लेकिन कहानी का हुंकारा नहीं भरा। तब बुढ़िया माई पड़ोसन के पास गई और कहानी सुनने को कहा। पड़ोसन ने कहानी सुनी और हुंकारा भर दिया। बुढ़िया माई ने सात दिनों के पश्चात्‌ कहानी सुनकर उद्यापन कर दिया ओर सभी सामान दान कर दिया। 
तब धर्मराजजी ने बुढ़िया माई के लिए धरती पर विमान भेजा। विमान देख सभी गांववासी स्वर्ग जाने को तैयार हो उठे। बुढ़िया माई बोली कि मेरी कहानी तो सिर्फ पड़ोसन ने ही सुनी है। तो सभी गांवो वालों ने बुढ़िया माई के पांव पकड़ लिए और धर्मराजजी की कहानी सुनाने का आग्रह किया। कहानी सुनने के पश्चात्‌ सभी विमान में बैठकर स्वर्ग पहुंचे तो धर्मराजजी ने कहा कि मैंने तो सिर्फ बुढिया माई के लिए विमान भेजा था। पर यहां तो सभी गांववासी एकत्रित हो गए। तब बुढिया माई ने कहा कि मेरी कहानी इस सबों ने सुनी हे, इसलिए आधा पुण्य इनको भी दो। तब धर्मराजजी ने सभी गांववासी को स्वर्ग में वास दिया। सो है धर्मराजजी महाराज जेसे बुढिया माई को स्वर्ग में वास दिया वैसे सभी कहने सुनने हुंकारी भरने वालों को स्वर्ग का वास दो। 
बोलो धर्मराजजी, यमराजजी महाराज की जय। 
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