त्याग से धन की शोभा
एक सेठजी इतने लोभी हो गये थे कि कोई भी टाइम ठीक से बातें नहीं करता था। प्रत्येक व्यक्ति उनका काम करने में टाल मटोल करता रहता था।
एक बार की बात है कि गाँव में कथा का आयोजन हुआ। सब लोगों को बड़े सम्मान पूर्वक अच्छे स्थान पर बैठाया जाता था परन्तु सेठ जी को सबसे पीछे एक कौने में स्थान दिया जाता था।
सेठजी को यह बात अच्छी नहीं लगी। वह सेठानी से बोले–मेरे पास सबसे अधिक धन होते हुए भी मेरी हज्जत नहीं करते। मुझे सबसे आगे बैठाने की बजाय सबसे पीछे एक कौने में बेठाया जाता है।
जिस दिन कथा समाप्त होनी थी तो उस दिन सेठानी ने एक कपड़े में कुछ फल-फूल और एक सौ एक रुपये बाँधकर सेठजी को दे दिये।
सेठजी ने जब उस थेली को भेंट की तो उन्हें सबसे आगे प्रथम पंक्ति में बैठाया गया। उस दिन से सेठजी समझ गये कि धन की शोभा त्याग ही है।