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भईया दूज की कहानी – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

भईया दूज की कहानी 

किसी नगर में एक ब्राह्मण रहता था जिसकी दो संतानें थीं। एक लड़का और एक लड़की। लड़की बड़ी सुशील थी। वह अपने भाई को कभी नाराज होकर बुरा भला नहीं कहती थी। वह भाई अपनी बहन से मिलने उसकी ससुराल गया तो वह चरखा कात रही थी। तभी बहन का सूत का तार टूट गया व भाई आने का पता नहीं लगा। वह तार बार बार जोड़ रही थी पर वह जुड़ा नहीं ओर पीछे मुड़कर देखा तो भाई खड़ा था। वह भाई से गले मिलकर अपने भाई के आदर सत्कार के लिए पड़ोसन से पूछने गई। उसने तेल का चोका लगाकर घी में चावल पकाए परन्तु चौका सुखा नहीं और चावल पके नहीं। 
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दूसरी सहेली से पूछने पर गोबर का चौका लगाकर दूध तथा पानी में चावल डालकर खीर बनाई और भाई को खिलाई। दूसरे दिन भाई के रास्ते के लिए वह चक्की में आटा पीसने लगी। आटे के साथ चक्की में सांप पिस गया ओर उसे पता नहीं चला। उसने उस आटे के लड्डू बना दिये ओर कपड़े में बांधकर दे दिये। जब वह चला गया तो उसे सांप पिसने का पता चला। भाई की प्यारी बहन अपने बच्चों को पालने में ही सोता छोड़कर भाई की राह पर चल दी। बहुत दूर जाने पर उसका भाई एक पेड़ को छाया में सोता हुआ मिला और पास में पोटली रखी देखी। भाई ने अब तक कुछ नहीं खाया था। उसने सारे लड्डू फेंक दिये और भाई के साथ पीहर चली गई। रास्ते में उसने भारी-भारी शिलाएं उतरी देखीं। एक राहगीर से जब उसने उन शिलाओं के बारे में पूछा तो उसने बताया कि जो बहन अपने भाई से कभी नाराज न होती हो उसके भाई की शादी के समय ये उसके छाती पर रखी जाएंगी। 
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थोड़ी दूर जाने पर उसे नाग तथा नागिन मिले। नाग बोला-जिसकी छाती पर ये शिलाएं रखी जाएंगी उसे हम खा लेंगे। उपाय पूछने पर नागिन ने बताया कि भाई के सब काम बहन करे या भाई भावज को कोसकर गालियां दे तभी वह भाई बच सकेगा। वहीं से वह भाई को कोसने लगी। गालियां देती देती पीहर पहुंच गई। मां बाप को बेटी का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा। विवाह की लगन आई तो वह भाई को गाली देती हुई स्वयं लगन चढ़ाने लगी ओर वह घोड़ी पर बैठ गईं ज्योंही वह घोड़ी पर बेठी तभी शिलाएं उड़ती हुई आईं ओर पुरुष के स्थान पर नारी को देखकर वापिस चली गई। ऐसा देखकर बारात के लोग उसे अपने साथ ले गये। फेरों का समय आया तो उसने भाई को पीछे धकेल दिया ओर गन्दी गन्दी गालियां देकर फेरे ले लिए।
 वह सब काम स्वयं कर रही थी। यहां तक कि सुहाग रात को भाभी के साथ स्वयं सोने चल दी। समय आने पर नाग नागिन उसके भाई को काटने आए। वह तो जानती थी। नाग नागिन को मारने की तैयारी पहले ही कर रखी थी। आते ही दोनों को मारकर जेब में रखकर तीन दिन तक सोई रही। सारे मेहमान विदा हो गए तब उसकी मां को उसकी याद आई कि उसे भी विदा करे। विदा के समय उसने मां की उपेक्षा कर गुस्से से बोली कि मैं इतनी नीच नहीं हूं। उसने मरे हुए सांपों को दिखाकर बताया कि नाग नागिन भाई भाभी को डसने आए थे। मैंने अपनी जान पर खेलकर भाई के जीवन की रक्षा की है। इसी भाई के पीछे में अपने बच्चे का पालने में रोते चिल्लाते छोड़कर आई हूं। मेरे भाई भाभी को किसी प्रकार का कष्ट न हो। यह कहकर लौटने लगी तो मां और भाई ने उसे रोका और आदर के साथ विदा किया। भैया दूज के दिन चित्रगुप्त की पूजा के साथ-साथ दवात तथा पुस्तकों की भी पूजा की जाती हेै।
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