केवल सीधे पन मे भी कष्ट
किसी जंगल में एक विषध्वर सर्प रहता था। लोग उसे देखते ही डरकर भाग जाते थे । उसके भय से वह रास्ता ही , बन्द हो गया था। एक दिन एक महात्मा उस रास्ते से जा रहे थे तो विषध्वर उनके दर्शन करके बड़ा खुश हुआ तथा महात्मा जी के सामने सिर झुकाकर वरदान मांगने लगा कि – आज से मैं किसी को नहीं काटूंगा ।
ऋषि तथास्तु कहकर आगे चल दिये। जब विषध्वर ने डंक मारना छोड़ दिया तो गांव के बच्चे उस पर पत्थर फेंकने लगे । कोई उसे लाठी से मारता तो कोई उसकी पूछ पकड़कर घससीटने लगता था। अपने सीधेपन के कारण वह सर्प बहुत कष्ट पाने लगा।
कुछ समय बाद जब ऋषि उसी रास्ते से लौटे तो विषधर ने सारा वृतांत ऋषि को बताया। ऋषि ने उसे समझाया कि जो तेरे पास आये या तुझे परेशान करे तो उसकी ओर फफकार मारकर दौड़ा कर। उस दिन से जो कोई विषध्र को मारने दौड़ता तो वह उसको फुफकार डरा देता था, जिससे वह भाग जाता था।
एक कहावत है-.टेढ जान शंका सब क्ाह्डू।
वदक़् चन्द्रमा ग्रसहलिं न राह्डू ॥