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कार्तिक की कहानी (2) – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

कार्तिक की कहानी (2) 

एक नगर की बात है वहां पर एक बूढ़ा और उसकी सात बहुएँ रहती थीं। एक दिन वे अपनी बहुओं से बोला-मेरा तो कार्तिक नहाने का मन है, क्‍या तुम निभा दोगी! छः बहुओं ने मना कर दिया तब बड़ी बहू ने कहा-पिताजी! मैं निभा दूँगी, आप यहां पर आकर कार्तिक नहा लेना। बूढ़ा हर रोज सुबह उठकर नदी पर जाकर नहाता और धोती उसके आंगन में सुखा देता था। जैसे-जैसे धोती में से पानी गिरता वैसे-वैसे आँगन में हीरे-मोती गिरते। 
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यह देखकर छःबहुएँ आपस में बातें करने लगी-पिताजी आप हमारे यहां नहा लेना। जब बूढ़ा कहने लगा कि ठीक है, मुझे तो नहाना ही हे सो में तुम्हारे यहां नहा लूंगा। तब अगले दिन प्रात: काल बूढ़े बाबा ने स्नान करके धोती उसके आँगन में सुखा दी। वहां पर हीरे-मोती नहीं गिरे तो वे सारी बहुएँ कहने लगीं-उसके यहां तो हीरे-मोती गिरते हैं और हमारे यहां कीचड। हमारे यहां तो तुम पाप से नहाते हो। आप उनके वहां ही नहा लेना। अब बूढ़ा बाबा बड़ी बहू के घर पर ही नहाने लगा। रोज सवेरे नहाकर धोती सुखाता तो हीरे-मोती गिरते थे। इस प्रकार कार्तिक का स्नान समाप्त होने को आया तो बूढ़े बाबा को चिंता सताने लगी। 
बड़ी बहू के पूछने पर बूढ़े बाबा ने कहा-बहू मेरा कार्तिक स्नान समाप्त होने वाला है, इसलिये मेरा मन करता हे कि मैं एक दिन सारे परिवार को खाने पर बुलाऊं। यह सुनकर बहू बोली-पिताजी! इसमें चिंता की क्‍या बात है। आप सभी परिवारजनों को निमंत्रण दे आइये। अब बूढ़ा न्योता देने बहुओं के यहां गया तो वह बोलीं कि जब तक वह घर पर रहेगी हम खाने पर नहीं आयेंगे। बूढ़ा बाबा आकर चिंता में सूखने लगा यह देखकर बड़ी बहू ने पूछा-पिताजी अब आपको किस बात की चिंता हे? तब बूढ़े बाबा ने अपनी बाकी छ: बहुओं वाली बात उसको बता दी। यह सुनकर बड़ी बहू बोली-इस बात से आपको चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है, मैं चार रोटी लेकर खेत पर चली जाऊँगी, आप उन्हें न्योता दें आइये। वे सारी बहुएँ आईं। उन्होंने कुछ तो खाना खाया ओर बाकी बचे हुए खाने में कंकड़, पत्थर डाल गई। उन्होंने सोचा कि अब आकर परेशान होगी। यहां बड़ी बहू खेत में यह कह रही थी-राम जी की चिड़िया, रामजी का खेत। चुग लो चिड़िया भर-भर पेट। मेरे सुसरे ने घर में जगह दी है ओर मैंने खेत में। इस प्रकार वह चिडिया को बाजरा डालकर घर आ गई। घर पर बड़ा बाबा उदास बैठा था। 
वह बोली-पिताजी क्या हुआ? आप उदास क्‍यों बेठे हैं? ससुर ने उत्तर दिया-बेटी! तुम्हारी देवरानी-जेठानी आई थीं और उन्होंने खूब भरपेट खाया-पिया, और बचे खाने में मिट्टी और कंकड़ पत्थर डाल गईं। तुम्हारे खाने के लिये कुछ नहीं बचा। वह बोली-कोई बात नहीं पिताजी! मैं तो चार रोटी और बना कर खा लूंगी आप बताइये सब ठीक-ठाक तो निपट गया? वह बोला-हाँ बाकी सब तो बहुत अच्छे से निपट गया। कुछ कम नहीं पड़ा।
बहू अन्दर जाकर देखती है कि जिस खाने में वह मिट्टी-कंकड़ ‘पत्थर डाल गई थीं उनमें हीरे-मोती बिखरे पड़े हें ओर घर महल हो गया है। सारा घर धन-दौलत से भर गया है। अन्न के भंडार भर गये हैं। तब उसने ससुर से कहा-पिताजी! आपने तो कहा था कि तुम्हारे लिये कुछ नहीं बचा। लेकिन मेरा घर तो हीरे, मोतियों से भर गया है, जहां देखो वहां धन-दोलठ की वर्षा हो रही है अन्न के भंडार भरे हुए हैं, घर महल बन गया है। जड़ । बूढ़े बाबा ने कहा-बेटी! तुमने कार्तिक सच्चे मन से निभाया था। ओर उन्होंनें पाप से! इसलिये कार्तिक देवता तुम पर प्रसन्न हुए हैं, इन्हीं की कृपा से तुम्हारा घर धन से भर गया हेै। जेसे कार्तिक देवता बड़ी बहू घर बरसे वेसे सभी के यहां बरसना।
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