भोगों में से जन्मा वैराग्य।
मानव जीवन एक शून्य-बिंदु के सदृश्य है। तब तक उसका कुछ भी मूल्य नहीं, जब तक उसके आगे त्याग एवं वैराग्य का कोई अंक न लगे। भोग और भोजन में तथा वासना और भवन में विमुग्ध रहने वाले मानव – जीवन मे भी कभी इतना चमत्कारपूर्ण परावर्त होता है की वह अपने शून्य होते जीवन के आगे वैराग्य का अंक लगाकर मृत्य से अमृत हो जाता है।
विदेह देश की राजधानी मिथिला के राजा नमि भव भोगों में अत्यंत आसक्त रहते थे। भोगों के अतिरेक में से दाह – ज्वर का वह भयंकर कालकूट फूट निकला, जो रात दिन नमि की प्रिय देह को सालता रहा। नमि का जीवन – सुख जीवन-भार में परिणत हो गया – सर्वत्र दुख और दर्द की दुनिया।
वैद्यराज ने वामन चन्दन लेप का आदेश दिया। चन्दन घिसने का और लेप करने का काम राजरानियों ने अपने हाथ में ही रखा – नमि के प्रति रानियों के मन में कितना गहरा अनुराग था।
चन्दन घिसते समय चूड़ियों के सम्मिलन से समुत्थित कोलाहल भी जब नमि को सह्य न हो सका, तब रानियों ने सौभाग्य संसूचक एक एक चूड़ी रख कर अपना काम चालू रखा। अब काम होते भी कोलाहल नहीं था।