मौन
1 इंद्रीयजित हो कर वाणी का संयम कर ले। वाणी का प्रयोग कभी सांसारिक कामों में न करें।वाणी का संयम होने पर मन का संयम सहज हो जाता है।मौन से बढ़कर संसार में कोई तप नहीं।
2संसार स्वतः ही हम से छूट रहा है, हमें उस को हटाना नहीं पड़ेगा। परमात्मतत्त्व स्वतः स्वाभाविक ही प्राप्त है, वह कभी अप्राप्त हो सकता ही नहीं। अतः कुछ भी चिन्तन न कर के चुप हो जाएं।चिन्तन आ जाए तो चला जाएगा।उसको न अच्छा मानें न बुरा,न अपने में ही मानें।परमात्मा का भी चिन्तन करोगे तो जड़ का आसरा लेना पड़ेगा।चुप होने में नींद, आलस्य, प्रमाद,असावधानी नहीं है।यदि नींद आती है तो चुप साधन न कर के नाम जप या कीर्तन करें।
3 नाम जप करते-करते चुप हो जाओ।जैसे पक्षी पर फैलाते हुए आकाश में ऊँचा उड़ता है,फिर पर फैला देता है।
4 जब मौन हो जाएंगे, तभी ऐसा माना जाएगा कि हम जगत को समझ पाए हैं।