भगवान के दर्शन
एक महात्मा थे। एक बार एक आदमी उनके पीछे पड़ गया कि मुझे भगवान के दर्शन करा दो। उन्होंने कहा- मुझे ही नहीं हुए तो मैं तुम्हें कहाँ से करा दूँ। अन्त में उन्होंने कहा कि जाड़े के दिनों में, पास के जंगल में केवल एक वस्त्र पहनकर किसी पेड़ के नीचे बैठ जाना। उसने स्वीकार कर लिया।
उसने उनके कथनानुसार काम किया। रात के तीन पहर बीत गये। किंतु कुछ नहीं हुआ, यह देखकर उसे बड़ा क्रोध आया। थोड़ी देर बाद श्रीकृष्ण एक छोटे-से बच्चे का रूप बनाकर आये और उससे बातें करने लगे। श्रीकृष्ण-तुम यहाँ क्यों बैठे हो ?
सज्जन-एक ब्राह्मण के चक्कर में पड़कर बैठा हूँ। श्रीकृष्ण-‘तुम्हारे पास कोई कम्बल नहीं है ? सज्जन-तुमसे क्यो मतलब। तुम मुझे यह पूछकर क्यों तंग करते हो? श्रीकृष्ण-मैं तो यों ही जंगल में आया करता हु गाय चराता हूँ। आया और पूछ लिया। तुम किस ब्राह्मण के चक्कर में पड़ गये।
सज्जन-तुम मुझे तंग मत करो भैया । श्रीकृष्ण-तुम चोर तो नहीं हो। सज्जन-कह दिया न, तुमसे क्या मतलब। चले
जाओ यहाँ से। श्रीकृष्ण-अच्छा में जाता हूँ।’ यह कहकर वे जाने लगे। इतने में कुछ सुन्दर-सुन्दर गायें आ गयीं और
श्रीकृष्ण चले गये।
थोड़ी देर बाद उसके मन में आया कि यह कौन है। इतने में उसे मुरली की आवाज सुनायी दी। वह उस तरफ दौड़ा; किंतु फिर उन्हें न पा सका।