कहानी: चक्खुपाल सथविर की कथा
श्रावस्ती के जेतवन महाविहार में चक्खुपाल नामक एक अंधे अर्हत भिखू थे। प्रातः काल उनके टहलते समय पैरों के नीचे दब कर बहुत सी बीर बहुतीयाँ मर जाती थीं। एक दिन कुछ भिखुओं ने यह बात भगवान् से कही। भगवान् ने कहा – “भिखुओं ! चक्खुपाल अर्हत भिखू है, अर्हत को जीवहिंसा करने की चेतना नहीं होती है।” तब उन भिखुओं ने भगवान् से पूछा -“भन्ते! अर्हत्व की प्राप्ति करने के लिए पूर्वजन्म में पुण्य करने पर भी “चक्खुपाल क्यों अंधे हो गए?” भगवान् ने कहा – चक्खुपाल ने अपने पूर्वजन्मों में एक बार वैध हो कर बुरे विचार से एक स्त्री की आँखों को फोड़ डाला था, वह पाप कर्म तब से चक्खुपाल के पीछे-पीछे लगा रहा, जिसने समय पाकर इस जन्म में अपना फल दिया है। जैसे बैलगाड़ी में नाते हुए बैलों के पैरों के पीछे-पीछे चक्के चलते हैं, वैसे ही व्यक्ति का किया हुआ पाप कर्म अपना फल देने के समय तब तक उसके पीछे पीछे लगा रहता है।
मन सभी प्रवृतियों का अगुआ है, मन उसकाप्रधान है, वे मन से ही उत्पन्न होती हैं। यदिकोई दूषित मन से वचन बोलता है या पापकरता है, तो दुःख उसका अनुसरण उसीप्रकार करता है, जिस प्रकार कि चक्का गाडीखींचने वाले बैलों के पैर का।
स्रोत: धम्मपद
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मन सभी प्रवृतियों का अगुआ है, मन उसकाप्रधान है, वे मन से ही उत्पन्न होती हैं। यदिकोई दूषित मन से वचन बोलता है या पापकरता है, तो दुःख उसका अनुसरण उसीप्रकार करता है, जिस प्रकार कि चक्का गाडीखींचने वाले बैलों के पैर का।
स्रोत: धम्मपद
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