वर मांगने की चालाकी
चालाकी अच्छी नहीं, सुनें सभी नर नार।
सर्वनाश हो जायेगा, पड़ेगी यम की मार॥
एक आदमी ने किसी देवता की आराधना की। काफी समय तक आराधना के बाद देवता उसके सम्मुख प्रकट होकर उससे बोले- वरं ब्रूहि ‘ ‘ तू वर मॉंग । आदमी बोला-“जो माँगू वही पाऊँ।” इसको सुनते ही देवता ने कहा कि अच्छी बात है जो चाहोगे वही मिलेगा। आदमी बोला मेरा वर यह है कि जब चाहूँ तब तीन वर माँग लूँ। देवता बोले तथास्तु। देवता बोले कि इस समय तो तुम्हें वर की आवश्यकता ही नहीं है क्योंकि तुम्हारे कथन में यह आया है कि मैं जब चाहूँगा माँग लूँगा। इस पर आदमी बोला- इस समय वर की कोई आवश्यकता नहीं है।
यह सुनकर देवता अन्तर्ध्यान हो गये और वह आदमी भी अपने घर को चला गया। कुछ दिन बाद उस आदमी ने देवता को याद किया। देवता उपस्थित हो गये । आदमी बोला मुझे उन तीन वरदानों की जरूरत है। देवता बोले -माँगो क्या चाहते हो? आदमी बोला पहले वरदान में मैं लखपति बन जाऊँ,दूसरे वरदान में मैं विवाहित हो जाऊँ और तीसरे वरदान में मैं जब चाहूँ फिर से तीन वर माँग लूँ।
लाचारी में देवता ने तीनों वरदानों के लिए तथास्तु कह दिया। वह आदमी अपने घर के कामों में लग गया। तीन महीने के अन्दर वह आदमी लखपति बन गया, चौथे महीने में उसका विवाह हो गया। वह मौज मस्ती करने लगा। परन्तु तृष्णा किसी को भी चैन से नहीं बैठने देती। तृष्णा के फंदे में फंसकर उस आदमी ने फिर देवता का स्मरण किया। देवता के उपस्थित होने पर वह आदमी बोला, पहले वर में मैं तुमसे माँगता हूँ कि मैं राजा बन जाऊँ और दूसरे वर के अनुसार मैं एक पुत्र माँगता हूँ। देवता ने तथास्तु कहा। अब वह आदमी बोला तीसरा वर में मैं जब चाहूँ फिर से तीन वर माँग लूं। देवता ने तथास्तु कह दिया।
यह दृष्टान्त बहुत बड़ा है। उसको यहीं समाप्त कर यह विचार करना चाहिए कि क्या किसी युग के तीन वर पूरे होकर इस देवता का पिण्ड छोड़ सकते हैं, जिसका उत्तर है- नहीं! क्योंकि तीन वर माँगने में चालाकी से काम लिया गया है।