भगत हनुमान और भगवान राम
मैं तुम्हारा चिरऋणी – केवल आपके अनुग्रह का बल
हनुमान जी के द्वारा सीता के समाचार सुनकर भगवान् श्रीराम भावुक होकर कहने लगे – हनुमान्! देवता, मनुष्य, मुनि आदि शरीर धारियों में कोई भी तुम्हारे समान मेरा उपकारी नहीं है। मैं तुम्हारा बदले में उपकार तो क्या करूँ, मेरा मन तुम्हारे सामने झाँकने में भी सकुचाता है। बेटा! मैंने अच्छी तरह विचारकर देख लिया – मैं कभी तुम्हारा ऋण नहीं चुका सकता। धन्य कृतज्ञता के आदर्श-राम स्वामी।
हनुमान ने कहा – मेरे मालिक! बंदर की बड़ी मर्दानगी यही है कि वह एक डाल से दूसरी डाल पर कूद जाता है। मैं जो समुद्र को लॉघ गया, लंकापुरी को मैंने जला दिया, राक्षसो का वध करके रावण की वाटिका को उजाड़ दिया – इसमें नाथ! मेरी कुछ भी बड़ाई नहीं है,
यह सब हे राघवेन्द्र! आपका ही प्रताप है। प्रभो! जिस पर आपकी कृपा है, उसके लिये कुछ भी असम्भव नहीं है। आपके प्रभाव से और तो क्या, क्षुद्र रूई भी बड़वानल को जला सकती है। नाथ! मुझे तो आप कृपा पूर्वक अपनी अति सुखदायिनी अनपायिनी भक्ति दीजिये। धन्य निरभिमानितापूर्ण प्रभु पर निर्भरता!