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भेया पाँचे की कहानी – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

भेया पाँचे की कहानी

एक राजा था। उसके सात बहू बेटे थे। छह बहुओं का तो पीहर था, सातवीं का कोई पीहर नहीं था। छः बहुएँ कुएँ पर पानी भरने गई तो आपस में बोलीं कि जल्दी-जल्दी पानी भर लो, बाद में धोक मारने जाना ‘. है। उन छह बहुओं से कुंए पर किसी ने कहा कि तेरी जिठानी क्‍या कर रही है? इस पर वह छः: बहुएं बोलीं कि वह तो चरखा कात रही है। उसे क्‍या पता कि भैया पाँचे क्या है इसका क्‍या मतलब है? क्योंकि उसका न तो पीहर है और न ही उसका कोई भाई है। यह सारी बातें एक सर्प ने सुनी और सुनकर उन छ: बहुओं के पीछ-पीछे चल दिया। घर में आकर उस सर्प में आदमी का रूप धारण कर लिया ओर सातवीं बहू से बोला-‘“बहन राम-राम।”” वह सोचने लगी कि मेरे तो कोई भाई नहीं था तू भाई कहां सें आ गया? भाई बोला-‘“बहन! तेरी शादी के बाद मेरा जन्म हुआ इसलिये तू मुझे नहीं जानती।’” फिर वह अपनी सास से पूछने गई कि, मेरा भईया आया हे क्‍या करूँ। तब सास ने कहा कि तेल से चूल्हा लीप ले ओर तेल में चावल चढा ले। ऐसा करने पर न तो चूल्हा सूखा और न ही चावल पके। फिर पड़ोसन के यहां पूछने गई। पड़ोसन ने बताया कि मिट्टी से चूल्हा लीपकर पानी में चावल चढा दे। दाल-चावल बनाकर घी-बूरा मिलाकर उसने अपने भाई को जिमाया। जीमने के बाद भाई बोला-“बहन मैं तुझे घर ले जाने आया हूँ।”” बहन को साथ लेकर जब भाई जंगल में ले गया ओर वहां जाकर बहन से बोला कि अब में सर्प बनूँगा और तुम डरना नहीं। मेरी पूँछ पकड़कर बाबी के अन्दर  मेरे पिछे पिछे आजा।ब्रांबी में पहँचने के बाद भाई बहन बोलने लगे-‘हमारी बहन आई है।’” भाभी बोली “हमारी ननद आई है । ए ह भतीजे बोले-”हमारी बुआ आई है।”’ माँ हर रोज अपने बच्चों को घंटी बजाकर बुलाती ओर उनके आने पर उन्हें दुध पिलाती थी। और वह देखती रहती थी। एक दिन वह माँ से छोटे बहन-भाईयों को दुध पिलाने की जिद करने लगी तो माँ बोली-”ले दूध तो पिला ले परन्तु गर्म दूध पर घंटी मत बजाना।”” उसने गलती से गर्म-गर्म दुध पर घंटी बजा दी जिसके पीने से किसी की जीभ, किसी की मूँछ और किसी का फन जल गया। तब सब गुस्से से बोले कि इसने हमें जलाया है हम इसको खायेंगे। यह सुनकर माँ बोली-”इससे गलती हो गई, में इसकी तरफ से माफी माँगती हूँ और इसको छोड़ दो।”” उसकी भाभी के लड़का हुआ तो भाभी बोली-“माँगो ननद तुम्हें क्या चाहिए।” ननद के माँगने पर भाभी ने अपना नोलखा हार ननद को दे दिया और कहा कि अगर तुम यह पहनोगी तो हार ही रहेगा और कोई पहनेगा तो उसके गले में सर्प बन जायेगा। राजा का लड॒का उसे लेने आया तो उसने भगवान से प्रार्थना की कि हें भगवान! उस बांबी की जगह महल-चोबारे बना दो। जब उन्हें वहाँ रहते-रहते ढाई दिन हो गये तो राजा का लड़का पत्नी को लेकर जाने के लिये बोला। विदा करते समय उन्होंने उसे बहुत दास-दासी, हाथी-घोड़े, धन-दौलत देकर विदा किया। लेकिन जाते समय राजा का लड़का अपनी धोती भूल गया और रास्ते में धोती की याद आने पर अपनी पत्नी से बोला कि में अपनी धोती भूल आया हूं ओर में अपनी धोती वापस लेकर आता हूं। तब पत्नी बोली कि उन्होंने हमें इतना सब कुछ विदाई में दिया है फिर भी अपनी पुरानी धोती लेने जाओगे तो मेरी भाभियाँ क्‍या कहेंगी। उसने कहा कि ऐसा नहीं होता कि नई मिल जाने पर पुरानी चीज छोड़ देनी चाहिए और मैं तो अपनी पुरानी धोती लेकर ही आऊंगा। राजा के लड़के ने जिद पकड़ ली ओर धोती लेने चला गया। राजा के लड़के ने वाहां पर जाकर देखा कि न तो वहां पर कोई महल है न ही चौबारा और उसकी धोती कीकर के पेड़ पर लटक रही है। यह देखकर राजा का लड़का अपनी पत्नी पर तलवार तानकर खड़ा हो गया कि या तो सब सच-सच बता नहीं तो में तुझे मार डालूंगा। तब पत्नी ने राजा के लड़के को बताया कि कुएं पर पडोसन से देवरानी-जेठानी बोली मार रही थीं कि मैं भैया-पाचें क्या जानूँ क्‍योंकि मेरे तो पीहर ही नहीं था। यह सब सर्प-देवता सुन रहे थे ओर वही मेरा धर्म-भाई बना। आपके आने की सुनकर मैंने तो भगवान से सिर्फ ढाई दिन का पीहर माँगा था।
घर आने के बहुत दिनों के बाद बहू के लड़का हुआ तो उग्रको
ननद भी बहू के पूछने पर बोली कि मैं तो वही नौलखा हार लंँगी जो
तुम अपने पीहरी से लाई हो। तब बहू बोली कि तुम और कुछ भी मौग
लो मैं सब दे दूंगी यह मेरे ढाई दिन के माँगे पीहर का हार है। अगः मैं
यह पहनूंगी तो सोने का रहेगा, कोई और पहने तो सर्प बन जायेगा। तब
ननद बोली में लूंगी तो यही हार, नहीं तो कुछ नहीं लूंगी। तब बहू ने हा?
ननद को दे दिया। जब ननद हार पहनने लगी तो वह सर्प का बन गया।
यह देखकर बहू बोली कि मैंने तुम्हें पहले ही कहा था कि यह मेरे ढाई
दिन के माँगे पीहर का हार है और ननद को पूरी आपबीती कह डाली
कि उसे यह हार किस तरह मिला और कैसा मेरा ढाई दिन का माँगा
पीहर था। यह सब सुनकर तब ननद बहू से बोली कि, भाभी क्‍या सच में
ही भैया पाँचें में इतना शक्ति है, विश्वास नहीं होता। तब बहू के समुर
(राजा) ने नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि लगते श्रावण की पंचमी को
सब कोई भैया पांचे मनायें। चने मोठ भिगोएं, कीकर के झाड़ में पिरोएं
और चने-मोठ से धोक मारकर इन्हीं का बायना मिनसें। कहते हे को,
कहने वाले का भला ओर सुनने वाले का भला। बाद में गणेश जी की कहानी भी सुनायें ओर सुनें। जेसी उनको आई ऐसी सबको आए।
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