आप अंधे है
हरिद्वार तीर्थ स्थान में एक सूरदास भजन गा-गाकर भिक्षा माँगा करता था। लोग उसे चने, केले, अमरूद या पैसे दे दिया करते थे। इससे वह सूरदास बड़ा प्रसन्नतापूर्वक जीवन व्यतीत कर रहा था। एक दिन एक गृहस्थ उधर से जा रहा था। वह सूरदास का भजन सुनकर बहुत खुश हुआ। उसने खुश होकर सूरदास के हाथों में पाँच रुपये का नोट रख दिया। बेचारा सूरदास अभी तक नोटों से परिचित नहीं था। नोट कितने रुपये का है उसे यह भी पता नहीं था।
वह यह सोचकर पछताने लगा कि सेठ ने मेरे हाथ में कागज का एक टुकड़ा रख दिया है। सूरदास ने सोचा था कि सेठ बड़े आदमी हैं। ये दो चार आने जरूर देंगे परन्तु यह तो बहुत बड़े कंजूस निकले। कागज का टुकड़ा थमाकर मेरे साथ मजाक कर गये। सूरदास इस तरह बड़बड़ाता चला जा रहा था। वह नोट को फाड़ कर फेंकने ही वाला था कि उसका एक परिचित व्यक्ति आ गया और उससे बोला यह पाँच रुपये का नोट है।
सूरदास बोला क्या कहते हो भाई? तुम भी मजाक करने लगे। उस व्यक्ति ने कहा मैं भला तुमसे मजाक क्यों करूँंगा। चलो बाजार में, में इस नोट के बदले पाँच रुपये के सिक्के दिला देता हूँ। सूरदास रुपये पाकर बहुत ही प्रसन्न हुआ।इसी प्रकार प्रभु भी हमको बहुत कुछ देता है परन्तु सूरदास की तरह हम भी उन्हें देख नहीं सकते।