हाँ हजूर
एक राजा ने सभा में बैठे हुए बैंगन को देखकर कहा -अहा! बैंगन कितना अच्छा पदार्थ है?
तभी राजा का मंत्री बोला-श्रीमान जी! आप सत्य कहते हैं।यदि यह सब में श्रेष्ठ नहीं होता तो इसके सिर पर कभी ताज नहीं रखा होता।
कुछ देर बाद राजा बोला – नहीं, नहीं , बैंगन तो सबसे निकम्मी वस्तु है। अब तक जो उसे मैं अच्छी वस्तु समझता रहा वह उचित नहीं था।
मंत्री ने कहा – हाँ हाँ श्रीमान! ठीक ही तो कहते हैं। ‘ बैंगन को खराब समझ कर ही लोगों ने इसका नाम बेगुन (बिना गुणों के) रखा है।
मंत्री की यह बात सुनकर राजा ने कहा – मंत्रीजी! जब हमने बैंगन को अच्छा बताया तब तो तुमने इसकी प्रशंसा की थी। पुल बाँध दिये और अब जब हमने इसकी बुराई की तो तुमने भी इसके अवगुणों को बताना शुरू कर दिया।
इस बात का क्या अर्थ है? मंत्री महोदय बोले – जहाँपनाह! मैं बैंगुन का सेवक नहीं हूँ “मैं तो आपका सेवक हूँ। आप जिसको अच्छा कहेंगे,
उसे मैं अच्छा और जिसे खराब कहेंगे उसे में खराब ही तो बतलाऊँगा। राजा ने मंत्री की बात सुनकर कहा -मुझे हां में हाँ मिलाने ने वाले जी हुजूरों की आवश्यकता नहीं है। इसलिए कल से तुम दरबार में मत आना।