आर्य कन्या की आराध्या-Worship of arya kanya
सृष्टि की सम्पूर्ण पवित्रता की साकार प्रतिमा निर्दिष्ट करना हो तो कोई भी बिना संकोच के किसी आर्यकुमारी का नाम ले सकता है। मृदुता, सरलता और पवित्रता का वह एकी भाव और उसकी भी आदर्शभूता श्रीजनक नंदिनी
मर्यादा पुरुषोत्तम ने अवतार धारण किया था धर्म की मर्यादा स्थापित करने के लिये। मानव-कर्तव्य के महान आदर्शो की स्थापना करनी थी उन्हें। उनकी पराशक्ति, उनसे नित्य अभिन्न श्री मैथिली उनके इस महान् कार्य की पूरिका बनीं। उन्होंने नारी के दिव्य आदर्श को मूर्त किया जगत में।
आर्यकन्या किसकी आराधना करे? स्त्री का उपास्य तो पति है या पति जिसकी आराधना की अनुमति दे वह; किंतु कुमारी यदि आराधना करनी चाहे, यदि उसे आराधना की आवश्यकता हो और आवश्यकता तो है ही; क्योंकि आराधनाहीन जीवन तो शास्त्र की दृष्टि में जीवन ही नहीं, फिर आकांक्षा न हो ऐसा हृदय गिने-चुने ज्ञानियों का ही तो हो सकता है, किसी बालिका के मन में आकांक्षा न हो तो वह किस देवता की शरण ले? इसका उत्तर सोचना नहीं पड़ता। आर्यकन्या की आराध्या हैं भगवती उमा। हिंदू बालिका उन गौरी की ही उपासना करती है।
श्रीजनक नन्दिनी तो आयी ही थीं धरा पर नारियों का पथ-प्रदर्शन करने। बालिकाओं को मार्ग दिखाया उन्होंने। उनका गौरी-पूजन; किंतु गौरी-पूजन करने चली थीं वे कोई विशेष संकल्प लेकर नही। माता ने आदेश दिया था पूजन का और सखियों के साथ आकर उन्होंने पूजन किया।
‘निज अनुरूप सुभग वर माँगा।
परंतु पूजन का फल तत्काल प्रत्यक्ष हो गया। पुष्प- वाटिका में ही श्री कौसल्या नन्द वर्धन रघुनाथ जी के दर्शन हो गये। अपनी निधि को नेत्रों ने देखते ही पहचान लिया और आकांक्षा उद्दीप्त हो उठी। आकांक्षा की पूर्ति के लिये भी शास्त्रीय मार्ग आराधना ही है और आर्यकन्या तो आराधना भी करेगी तो सतियों की आराध्या भगवती पार्वती की ही। अतः श्रीजनकनंदनी पुन: भगवती के मन्दिर में पधारीं। उन्होंने गणेश और स्वामिकार्तिक की जननी उन शम्भु प्रिया से प्रार्थना की। वे प्रार्थना करेंगी और देवी प्रसन्न नहीं होंगी:-
विनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।।