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श्रद्धा और मनोबल का चमत्कार-Wonders of faith and morale

श्रद्धा और मनोबल का चमत्कार
याममें रहते थे और कुछ दवा-दारू करते ही परंतु जिसकी चिकित्सा करते उससे लेते कुछ नहीं एक छोटी-सी दूकान और कुछ भूमि थी, उसीसे वन निर्वाह होता था। कई वर्षों से उनकी प्रबल इच्छा काशी जानेकी थी और वे यह भी कहा करते थे कि काशीजी में ही शरीरपात होनेसे कल्याण होगा। वे अपने मन्तव्यानुसार पूजा-पाठमें बहुत तल्लीन रहते थे।

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र अन्तमें, एक दिन आ ही पहुँचा जब कि काशीजी जानेकी सब सामग्री जुट गयी और अपनी धर्मपत्नी तथा पुत्रको साथ लेकर वे काशीधाम पहुँच गये। वहाँ पंचकोशीकी परिक्रमा समाप्त करके दशाश्वमेध घाटपर सायंकाल जा बैठे। गङ्गामें पाँव डालकर इस प्रकार प्रार्थना करने लगे-  ‘हे गङ्गा मैया! मेरी मनोऽभिलाषा तूने पूर्ण कर दी है। अब मैं वापस जाना नहीं चाहता। कल बारह बजेतक अपनी पावन गोदमें बिठलाकर मातृ-सुख प्रदान कर दे, अन्यथा मुझे ही प्रवाह लेना होगा।’ 
अपने निवासस्थानपर आकर सो रहे। भोर होते ही -उठ बैठे और अपनी धर्मपत्नीको भोजन बना लेने काआदेश किया। भोजन बन चुका तो पत्नी और पुत्रको भोजन करनेकी आज्ञा देकर कहने लगे–’मुझे तो भोजन नहीं करना है।’ जब दोनों भोजन कर चुके तब उन्हें इस प्रकार समझाना आरम्भ कर दिया- ‘देखना, यह शरीर तो अब काशीजीकी भेंट हो चुका है; अब प्राण भी यहीं विसर्जित होनेवाले हैं, इसलिये मेरे लिये कोई कर्तव्य शेष नहीं रहा। देखना! रोना-धोना नहीं।’ – और भी ऐसी ही बातें समझाने लगे।
सुनकर पत्नी और पुत्र दोनों हँसने लगे। समझे कि पण्डितजी हंसा कर रहे हैं। फिर भी गम्भीर होकर बोल उठे ‘हम ऐसी अवाञ्छनीय बातें सुनना नहीं चाहते।’ परंतु वे कहते ही रहे। ग्यारह बजेके लगभग भूमिको शुद्ध करके आसन लगाया और ध्यानावस्थित होकर बैठ गये। ठीक बारह बजे बिना किसी कष्टके और बिना कोई चिह्न प्रकट हुए ग्रीवा एक ओर झुक गयी। देखा तो उनका | स्वर्गवास हो चुका था! इस समाचारका जिन-जिनको पता लगा, सब एक होकर उनकी स्तुति करने लगे और सबने मिल बडी भक्तिसे समारोहपूर्वक अन्तिम संस्कार किया । एक ग्रामवासी साधारण व्यक्तिकी श्रद्धा-पान और मनोबलका ऐसा परिचय पाकर सचमुच बनआश्चर्य होता है!
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