अपने अनुभव के बिना दूसरे के कष्ट का ज्ञान नहीं होता
एक राजकुमार की शिक्षा पूरी हो चुकी थी । महाराज स्वयं आये थे मंत्रियों के साथ गुरुगृह से अपने कुमार को ले जाने । समावर्तन संस्कार समाप्त हुआ और राजकुमार ने आचार्यं के चरणों में प्रणाम किया । आचार्य बोले-ठहरो!मेरी छडी तो लाओ ।
राजकुमार ने छडी लाकर दी । आचार्य ने उस सुकुमार राजकुमार की दो छडी कसकर जमा दी ।
Without our experience, there is no knowledge of other’s pain |
उसकी पीठ पर छडी के चिह्न उमड़ आये । रक्त छलछला उठा । अब आचार्य ने आशीर्वाद दिया-वत्स ! तुम्हारा मङ्गल हो । अब पिता के साथ जाओ । विनम्र राजकुमार कुछ नहीं बोला किंतु राजा से रहा नहीं गया । वे बोले – अपराध क्षमा करे ! निरपराध को ताड़ना देने का कारण जानने की इच्छा हैँ ।
आचार्य ने शान्ति से कहा -इसकी शिक्षा में इतना अभाव रह गया था, दण्ड की तो कोई जात ही नहीं । यह इतना नम्र और सावधान है कि इसे ताडना देने का अवसर ही नहीं आया । परंतु इसे शासक बनना है,
दूसरों को दण्ड देना है । उस समय इसे अनुभव होना चाहिये कि दण्ड की वेदना कैसी होती है।