क्या ये जमीन और मकान तुम्हारे साथ जाएगा
महल अटारी, बाग ये, नहीं जावें संग।
धन पाकर तू कर रहा, क्यों निर्धन को तंग ॥
एक नदी के किनारे एक शहर बसा था। उस शहर में एक विधवा औरत का घर भी था। उसके घर के पास एक बाग भी था। यह बाग शहर के राजा ने लगवाया था। एक दिन राजा अपने बाग में सैर करने आये। राजा सैर करते -करते सोचने लगे कि यदि इस विधवा औरत का मकान भी इसमें मिला लिया जाये तो हमारा बाग बहुत बड़ा हो जायेगा।
राजा ने उस स्त्री को बुलाकर कहा- तुम अपना मकान हमें बेच दो। हम इस मकान को तोड़कर इस बाग में मिलाना चाहते हैं। स्त्री ने उत्तर दिया- मेरा पति का स्वर्गवास हो चुका है। मेरे एक पुत्र व पुत्री हैं। उन्हें लेकर मैं कहाँ जाऊँगी ? यह सुनकर राजा के क्रोध की सीमा न रही। उसने अपने राज्य कर्मचारियों को आज्ञा दी कि सामान सहित इसे व इसके बच्चों को मकान से बाहर निकाल दो । कर्मचारियों ने उस स्त्री व बच्चों को सामान सहित मार-पीट कर बाहर निकाल दिया। उस स्त्री के पास एक गधा भी था। वह गधे पर सामान लादकर और बच्चों को उस पर बैठाकर रोती हुई चल दी। थोड़ी दूर चलने पर उसे एक साधु खड़े मिले।
उन्होंने पूछा- देवी! तुम रो क्यों रही हो? उसने महात्माजी को सारी घटना से अवगत करा दिया। महात्मा जी ने सोचकर कहा तुम हमारे साथ एक बार राजा के पास चलो। हम राजा को समझाकर तुम्हारा मकान दिलाने का प्रयत्न करेंग वह अबला महात्माजी के साथ चल पड़ी। महात्माजी राजा के पास पहुँचकर बोले–हे राजन्! यह विधवा चाहती है कि यदि थोड़ी सी मिट्टी मेरे मकान की जमीन की मिल जाये तो में जिस जगह पर भी जाकर मकान बनवाऊँगी तो वहाँ पर उस मिट्टी को गाढ़कर अपने पुरखों की एक समाधि स्मृति के रूप में बनाऊँगी। राजा ने मिट्टी खोदने की इजाजत दे दी।
महात्मा जी ने बहुत सी मिट्टी खोदकर एक बोरी में भरकर राजा से कहा-। हे राजन्! इस मिट्टी के बोरे को उठाकर आप इस गधे पर लाद दीजिए। राजा ने कहा–इतना भारी मिट्टी का बोरा हमसे नहीं उठाया जायेगा? सन्यासी महात्मा जी ने कहा–हे राजन! जब आपसे यह मिट्टी का एक बोरा नहीं उठाया जाता है तब इतनी बड़ी जमीन और यह मकान आपसे कैसे उठाया जायेगा? इस विधवा स्त्री का आपने जो मकान छीन लिया है उसे आप अपनी मृत्यु के समय अपने साथ कैसे उठाकर ले जायेंगे। सच्चे सन्यासी का सच्चा उपदेश सुनकर अज्ञानी राजा को ज्ञान और वैराग्य प्राप्त हो गया। उसने तुरन्त उस स्त्री का मकान वापिस करते हुए अपना बाग भी उसी के नाम कर दिया।
भाइयों! मूर्ख, अज्ञानी, दूसरों की जमीन और धन को जो अधर्म से अपने अधिकार में कर लेते हैं, वे बड़ा भारी पाप कर्म करते हैं। वर्तमान युग में भी प्राय: देखने में आ रहा है कि कुछ सभा सोसाइटियाँ और ट्रस्टों में भी कुछ ऐसे नीच अज्ञानी व्यक्ति मौजूद हैं जो गरीबों की जमीन, मकान और उनके पूजा स्थलों को हड़प करने का प्रयत्न करते रहते हैं। उन पतितों और पापियों को यह बात हमेशा स्मरण रखनी चाहिए कि जब तुम्हारी अर्थी निकलेगी तब गरीबों और निर्धनों की जमीन, मकान तो दूर, किनारे रहेंगे अपितु छल, कपट एवं धर्म की आड़ में लूट के धन से पैदा किये हुए धन से बनवाये हुए कोठी, बंगले, मकान में से कोई भी साथ नहीं जायेगा।
हां, इतना अवश्य होगा कि ऐसे नीच बुद्धि वाले व्यक्तियों को अवश्य ही रौरव नरक में वास करना पड़ेगा। इतना ही नहीं कष्ट भी भोगना पड़ेगा। इसलिए हे अज्ञानी, नर पिशाचों! संभलो और सभाओं टस्टों की आड़ में दूसरों की पुरखों से चली आयी भूमि और स्थलों को छीनने या हड़पने से बाज आओ। इसी में तुम्हारा व तुम्हारे परिवार का कल्याण है।