मंदिर का निर्माण क्यों
मंदिर एक ऐसा स्थल होता है, जहां आध्यात्मिक ओर धार्मिक वातावरण होता है तथा देवपूजा उसका लक्ष्य होता है। यहां आप अकेले या अन्य व्यक्तियों की उपस्थिति में भी बेठकर शातमन से जप, पूजा पाठ, आरती, भजन, मंत्रपाठ, ध्यान आदि कर सकते हें।
ऐसे धूप-दीप आदि सुगंधित द्रव्यों के कारण मंदिर के चरणों की ओर दिव्यशक्ति का संचार होता रहता है, जिसके कारण भूतप्रेत और विषाणुयुक्त कीटाणुओं की शक्ति क्षीण होती है। वातावरण में आपके मन की भाव दशा प्रभु की भक्ति, पूजा, प्राथना उपासना के अनुकूल होती है, जिससे इन कर्म कांडों को पूरा करने का आपको शारीरिक और मानसिक लाभ मिलता है और अभिष्टफल की प्राप्ति होती है।
इसमें कोई दो मत नहीं कि मंदिर जाने वालों में वास्तविक भक्त कम ओर याचक यानी भगवान् से कुछ न कुछ मांगने वाले ज्यादा होते हैं। कुछ मन्नत मांगने के लिए मंदिर पहुंचते हैं तो कुछ मांगी हुई मन्नत पूरी होने पर अपना वायदा पूरा करने के लिए पहुंचते हैं। मतलब यह कि भगवान् को भी मंदिर में रिश्वत का लालच देने का प्रचलन आम बन गया है। यदि हम कुछ मांगने के लिए ही मंदिर जाते हैं तो फिर हम मंदिर नहीं, किसी दुकान पर जाते हैं।
वास्तविक, सच्चाभक्त भक्तिभाव, अहोभाव ओर प्रभू के प्रति श्रद्धा लेकर ही मंदिर जाता है। एक बार जदगुरु शंकराचार्य से नगरसेठ माणिक ने पूछा-” आचार्यवर! आप तो वेदांत के समर्थक हैं। भगवान् को निराकर सर्वव्यापी मानते हैं, फिर मंदिरों की प्रदर्शनात्मक मूर्तिपूजा परक प्रक्रिया का समर्थन क्यों करते हें?’! आचार्य बोले-”बत्स! उस दिव्य सर्वव्यापी चेतना का बोध सबको अनायास नहीं होता। मंदिरों में प्रात: संध्या, शंख-घंटों के नाद के साथ दूर-दूर तक उपासना के समय का बोध कराया जाता हे। घर-घर उपसना के योग्य उपयुक्त स्थल नहीं मिलते मंदिर के संस्कारित वातावरण में कोई भी जाकर उपासना कर सकता हेै।”
मंदिर के ऊपर बने गुंबद एक अर्थ में हमारे ऋषि मुनियों द्वारा खोजे गए पिरामिड संबंधी ज्ञान के प्रतिरूप हैं। पिरामिड सिद्धांत के गुंबद के रूप में एक ऐसे शक्तिक्षेत्र का निर्माण किया जाता है, जहां रखी वस्तुएं बहुत काल तक पृथ्वी के बाह्यय प्रभाव से मुक्त होकर सुरक्षित रहती हैं।
मिम्र के पिरामिडों में हजारों वर्ष से रखी मृत देह और अन्य वस्तुओं का आज भी सुरिक्षत मिलना तथा एक विशेष प्रकार की चुंबकीय शक्ति का वहां मिलना इन्हीं तथ्यों को प्रकट करता है। इस रूप में मंदिर के गुंबद का देव प्रतिमाओं , साधकों ओर उनकी भावनाओं की सुरक्षा एवं इच्छा पूर्ति से स्पष्ट संबंध प्रतीत होता हे।