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गुरु का महत्व क्‍यों

गुरु का महत्व क्‍यों

भारतीय संस्कृति में ‘आचार्य देवो भव’ कहकर गुरु को असीम श्रद्धा का पात्र माना गया है। गुरु शब्द में “गु” का अर्थ अंधकार तथा ‘रु’ का दूर करने से लगाया जाता है। अर्थात जो अंधकार को दूर कर सके, वही गुरु है। वेसे, हमारे शास्त्रों में गुरु के अनेक अर्थ बताए गए हैं। गुरु का महत्व इसी तथ्य से स्पष्ट होता है कि इस धरती पर जब भगवान ने अवतार लिया तो उन्हें भी गुरु का आश्रय ग्रहण करना पड़ा।

आदिकाल से हमारे समाज ने गुरु की महत्ता को एक स्वर से स्वीकारा है। ‘गुरु बिन ज्ञान न होहि’ का सत्य भारतीय समाज का मूलमंत्र रहा है। माता बालक की प्रथम गुरु होती हे, क्योंकि बालक सर्वप्रथम उसी से सब कुछ सीखता है । जब वह विद्यालय में जाता है, तो शिक्षक उसके गुरु हो जाते हैं, जो उसे शिक्षा प्रदान करते हैं। वेसे तो जिससे भी जो कुछ सीखा जाये, वही गुरु होता है। भगवान्‌ दत्तात्रेय ने अपने चौबीस गुरु बतलाए थे। लोक में सामान्यतः दो गुरु होते हैं प्रथम तो शिक्षागुरु और दूसरे दीक्षागुरु। शिक्षागुरु बालक को शिक्षित करते हैं ओर दीक्षागुरु मनुष्य के अंदर संचित मलों को निकाल कर उसके जीवन को सत्पथ की ओर अग्रसरित करते हैं।
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गुरु का स्थान भगवान से भी उंचा होता है, इसलिए नित्य शक्ति संयुक्त, श्रीशिव रूप श्री गुरुदेव का ध्यान करके उनके चरण कमलों से बहते हुए अमृत से अपने स्वयं को भीगा हुआ आनंद मय पवित्र जानकर मानसोपचारों से उनका पूजन करके जो शिष्य नित्य गुरु मंत्र को जपता है यानि गुरु द्वारा बताए वचनों पर चलता हे वह शीघ्र स्वाभीष्ट पद पर पहुंच जाता है। गुरु मंत्र का अर्थ है दीक्षा के समय दिया गया गोपनीय गुरु मंत्र। दीक्षा का एक अर्थ उपदेश भी है।

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