हिन्दू सनातन धर्म अन्तर जातीय (अन्य जाति में) विवाह करने की आज्ञा क्यों नहीं देता?
दो अलग-अलग जातियों में जो विवाह होता है उससे उत्पन्न सन्तान को ‘वर्णासंकर’ कहा गया है। यह वर्णासंकर संतान कुल का नाश करके नरक में ले जाने का कारण बनती है। वर्णा संकर सन्तान पितरों का तर्पण, पिण्डदान आदि करने के योग्य नहीं माने गये हैं क्योंकि इनके पिण्डदान से पितर तृप्त नहीं होते।
Why does Hindu Sanatan Dharma not allow inter-caste (other caste) marriage? |
वैज्ञानिकों ने आम और बेर आदि वृक्षों मे दूसरी नस्ल के पौधों का पैबन्द लगकर एक ही वृक्ष में दो प्रजातियों के फल लेने की विधि तैयार की किन्तु दु:ख की बात यह कि इन पौधों में लगे फलों के बीजों से आगे पौधे” उत्पन्न करने की क्षमता समाप्त हो जाती है। तात्पर्य यह कि व्णा संकर सन्तान से- वंश वृद्धि की संभाव ना समाप्तं हो जाती है।
विजातीय विवाह से दोनों के गुण समाप्त होकर नवीन विकृति युक्त गुणों का प्रादुर्भाव होता है। जिस प्रकार शुदध देसी घी अति स्वादिष्ट और प्रिय होता है तथा मधु (Honey) अति मधुर, मीठा होता हैं किन्तु यदि दोनों को मिला दिया जाए तो तेज किस्म का जहर बन जाता है। इसी कारण धार्मिक एवं वैज्ञानिक दोनों कारणों से अन्तरजातीय विवाह का निषेध है।