ईश्वर स्वतः क्यों आता है?
एक दिन बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा – ईश्वर की आज्ञा में देवता, ऋषि, मुनि तथा पार्षद लगे रहते हैं। फिर क्या कारण है कि इनमें से किसी को आज्ञा न देकर उन्हें स्वयं क्यों अवतार लेना पड़ता है?
बीरबल ने बादशाह अकबर से कहा- जहाँपनाह “हे उत्तर मैं कुछ दिन बाद दूँगा।
बीरबल ने एक चतुर कारीगर को तलाशा और उसे बादशाह अकबर के बेटे को दिखाया जो उस समय चौदहपन्द्रह माह का ही था। बीरबल ने उस कारीगर से मोम का पुतला बनाने को कहा जो देखने में बादशाह के बेटा जैसा होना चाहिए।
कारीगर ने मोम का पुतला तैयार कर दिया जो देखने में राजकुमार ही लगता था। बीरबल ने इस मोम के पुतले के लिए उसी प्रकार के वस्त्र बनवाये जैसा बादशाह का लड़का पहना करता था।जब सब तैयार हो गया तो एक दिन बीरबल बादशाह अकबर से बोले- जहापनाह आजकल गर्मी बहुत पड़ रही है। मेरी इच्छा है कि आज सांयकाल नाव में बैठकर यमुना नदी की सैर की जाये। बादशाह ने बीरबल का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और सात बजे का समय भी दे दिया।बादशाह के लिए नाव को सजाया गया और नियत समय पर बादशाह पहुँच गये।
बादशाह के साथ में शहर के बड़े-बड़े रईस, अदालतों के हाकिम, उमराव, फौज के बड़े अफसर, बड़े-बड़े तैराक व मल्लाह नाव पर आ विराजे। जब कुछ अंधेरा हो गया तो बीरबल उस मोम के बने लड़के को भी साथ में ले आया। बादशाह ने कहा, तुम इस लड़के को क्यों ले आये हो?
बीरबल ने बताया -यह किले में रो रहा था इस कारण इसे मैं साथ में ले आया हूँ, इसके कारण ही मुझे देर भी हो गईं। यमुना की लहरों की ठण्डी हवा लगने से इस बच्चे को नींद भी आ गई है। बादशाह अकबर बोले- अच्छा बैठो। बीरबल नाव के किनारे पर बैठ गया। मल्लाहों को नाव चलाने का आदेश दे दिया गया।
नाव धीरे-धीरे चलती हुई यमुना नदी के बीच धार में पहुँच गई तो बीरबल ने बड़ी युक्ति के साथ उस मोम से बने लड़के को यमुना में डाल दिया और एकदम चिल्लाने लगा हाय-हाय लड़का नदी में गिर गया। यह सुनकर बादशाह फौरन यमुना नदी में कूद गये और तैरते हुए लड़के को पकड़ लिया। लड़के को पकड़ते ही बादशाह को मालूम पड़ गया कि यह नकली बना हुआ है तो उसको पानी में ही छोड़ दिया। इतने में नाव बादशाह के पास पहुँच गई। बादशाह नाव पर चढ़ गये और दम लेकर बीरबल पर गुस्सा हुए कि इतनी बड़ी गुस्ताखी?
बीरबल बोला- आप मुझ से कह रहे हैं क्या आपको उचित था कि इतनी गुस्ताखी करें? बादशाह ने पूछा-मैंने तुम्हारे साथ क्या गुस्ताखी की है? बीरबल ने उत्तर दिया कि यदि मैंने इंच भर गुस्ताखी की है तो आपने मेरे साथ गज भर की गुस्ताखी की है, यदि मैंने एक पाव गुस्ताखी की है तो आपने चारपन सेरी की गुस्ताखी की है।
इस नाव में शहर के रईस, अदालतों के हाकिम, फौज के आफिसर, अमीर-उमराव, बॉडी गार्ड, बड़े-बड़े तैराक, मल्लाह और खास में दीवान बैठे हुए हैं, तब आपने किसी को आज्ञा ने देकर स्वयं यमुना में कूद गये, यह सबसे बड़ी गुस्ताखी नहीं है तो क्या है? आपका यह बहुत ही अनुचित कार्य है। बादशाह बोले- ऐ बीरबल! जब हमने सुना कि हमारा प्राण प्यारा पुत्र यमुना में गिर गया है तो पुत्र के प्रेम में ऐसे डूब गये कि हम बात करना, हुक्म देना भूल गये और प्रेम के बंधन में बंध कर एकदम नदी में कूद पड़े।
बीरबल बोला- बस हुजूर! ईश्वर के अवतार का उत्तर हो गया। जिस तरह भगवान के प्राण प्यारे भक्तों के ऊपर कष्ट पड़ता है तो वह किसी को भी आज्ञा न देकर स्वयं ही कूद जाते हैं। भगवान श्री कृष्ण चन्द्र जी ने गीता के चौथे अध्याय में सामान्यतया से अवतार धारण करने की तीन आवश्यकताएँ बतायी हैं-
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्टकृत्याम।
धर्म संस्थापनार्थय संभवामि युगे युगे॥
अर्थ- सजनों की रक्षा करना, दृष्टों को दण्ड देना, धर्म की स्थापना करना ही अवतार धारण करने की आवश्यकताए हैं। इन तीन कारणों में अवतार धारण करने का एक कारण बीरबल ने अद्भुत घटना से दिखला दिया और दिखलाया भी इस तरह से कि अकबर को मानना ही पड़ा।
निष्कर्ष -परमात्मा सर्वशक्तिमान है। सर्वशक्तिमान का अर्थ है–जिसमें समस्त कार्य करने की सामर्थ्य हो। तो क्या परमात्मा अपनी शक्ति से अवतार धारण नहीं कर सकता? यदि कहे कि नहीं कर सकता, तो फिर उसको आप एक शक्ति कम का ही परमात्मा मानोगे। अस्तु भगवत् के अवतार आदि पर तर्क करना सर्वथा निर्मल है।