क्यों
यत्न विफल सारे हुए, नैया नाहीं पार।
क्यों के खूंटे बंध रही, जीवन की पतवार॥
एक बार एक ग्राम के आठ मनुष्य इकट्ठे होकर बात करने लगे कि यहाँ पर तो हम खाली पड़े हैं, इसलिए कलकत्ता जाकर नौकरी ढूँढ़ी जाये। इसके लिए सब तैयार हो गये परन्तु सब सोचने लगे कि हमारी ज़ेबें तो खाली हैं, टिकट किस प्रकार लेंगे।पैदल भी इतनी दूर की यात्रा करना सम्भव नहीं है। उनमें से एक आदमी ने सुझाव दिया कि घाट पर नावें बहुत होती हैं। रात को आठ नौ बजे के बाद सब मल्लाह नावों को छोड़कर अपने-अपने घरों को चले जाते हैं। उनमें से एक नाव पर सवार होकर चार पाँच घंटे में पहुँचा जा सकता है। सबको यह प्रस्ताव अच्छा लगा।
दो दिन पश्चात् सब अपना बिस्तर-बोरिया लेकर शाम को नदी के किनारे पहुँच गये। उस समय तक सब मल्लाह अपने घरों को जा चुके थे।वे आठों आदमी एक नाव पर सवार होकर उनमें से एक ने नाव को खेना शुरू कर दिया। रात के बारह बजे उनमें से एक व्यक्ति बोला- अब हम कहाँ पहुँच गये हैं। दूसरे ने बताया कि हम पटना शहर में पहुँच गये हैं। उनमें से कुछ सो गये और कुछ तम्बाकू पीने लगे। अन्दाज जब दो बज गये तो एक व्यक्ति ने पूछा हम कहाँ पर पहुँच गये हैं?
दूसरे व्यक्ति ने उत्तर दिया -दाहिनी ओर थोड़ी दूरी पर कोई मुकाम है। अन्य दो तीन बोल उठे- हाँ हाँ ये मुकाम है। इतना कहकर फिर सो गए। चार बजे नाव चलाने वाले ने सबको जगाकर कहा कि मैं थक गया हूँ। अब कोई दूसरा व्यक्ति नाव को चलाये। नाव चलाने वाला बदल दिया गया। सब विचार करने लगे कि हम कहाँ पहुँच गये हैं। उनमें से एक ने कहा हम मुँगेर के नजदीक पहुँच गये हैं। सवा छ: बजे नाव को खेने वाले ने फिर सबको उठाकर कहा कोई दूसरा नाव को चलाये मैं थक गया हूँ। दूसरा आदमी नाव को चलाने लगा और शेष सात व्यक्ति सो गये। कुछ देर बाद सूर्योदय होने पर कुछ व्यक्ति जागे। उन्होंने एक आदमी को नदी के किनारे पर खड़ा देखा तो उससे उन्होंने पूछा यह कौन सा शहर है। उसने बताया यह हाजीपुर है।
यह सुनकर सब चौंक पड़े। वे सोचने लगे यह हमारा शहर कैसे हो सकता है? उनमें से तीसरा व्यक्ति बोला -यह तो हमारा ही शहर हाजीपुर लगता है। सब विचार करने लगे कि हमारी नाव गंडकी नदी से चलकर गंगा नदी में आ गई, फिर पटना शहर निकल गया, मुंगेर पीछे रह गया। नाव आगे बढ़ती रही, यह नाव वापिस हाजीपुर कैसे पहुँच गईं। खोजने पर चला पता कि नाव खूंटे से बंधी थी। उसे खोलना वे भूल गये। वे सब शहर कल्पित पटना, मुकामा, मुंगेर सब मन में कल्पित करते रहे। नाव तो हाजीपुर में खड़ी रही ।
कहने का तात्पर्य यह है आज हिन्दू जाति के सब नेताओं के पीछे ”क्यों” खूंटे से बंधी हुई उनकी जीवन नौका भवसागर से बाहर नहीं निकल पाती। वे लोग बड़े-बड़े बाल रखकर वेदों के सार रूप गीता को हाथ में पकड़कर स्टेज पर मेंढक की तरह टर-टर कर गीता का संदेश सुनाया करते हैं। वे धर्म के सच्चे सिद्धान्त को पता स्वार्थवश अपनी प्राचीन जाति को छिपाते हुए “क्यों “रूपी खूंटे से बंधे रहते है।
आज यदि हिन्दू जाति में सच्ची जागृति उत्पन्न करनी है तो इस ”क्यों ” रूपी खूंटे को उखाड़ फेंकना होगा। नहीं तो हिन्दू जाति की नौका क्यों के खूंटे से बंधी रहकर वहीं रह जायेगी।