Kabir ke Shabd
हम से बड़ा कौन परिवारी।।
सत्त से पिता धर्म से भ्राता, लज्जा सी महतारी।
शील बहन संतोष पुत्र है,
क्षमा हमारी नारी।।
आशा साली तृष्णा सासु, लोभ मोह ससुराली।
अहंकार से ससुर हमारे,
वे सबके अधिकारी।।
दिल दीवान सूरत है राजा, बुद्धि मंत्री न्यारी।
काम क्रोध दो चोर बसत हैं,
उनको डर मोहे भारी।।
ज्ञानी गुरु विवेकी चेला, सदा रहें ब्रह्मचारी।।
पाँच तत्व की बनी नगरिया,
दास कबीर निहारी।।