Kabir ke Shabd
हंसा कहां से आया रे, वहाँ का भेद बता भाई।
तूँ तो पूरा ज्ञानी रे, इसका पद समझा भाई।।
धोले अम्बर धूल नहीं थीं, नहीं था चन्दा सूरा।
उस दिन की मनै खोज बतादो,कौन गुरू मिला पूरा।।
काया माया कुछ भी नहीं था, नहीं था ये ओंकारा।
नाभि कंवल विष्णु भी नहीं था, कहाँ था हंस तुम्हारा।।
जिया जून में कुछ भी नहीं था, नहीं थे मुल्ला काज़ी।
उस दिन की मनै खबर बतादो, किस दिन रची या बाज़ी।।
काया में कुछ भी नहीं था, नहीं था पिंड ब्रह्मंडा।
सूतक सातक काम चलाऊ, नहीं था 18 खण्डा।।
16 शँख पे तकिया हमारा, अगम महल पे चन्दा।
हंस सरूपी हम से निकले, काटन यम का फंदा।।
इस ग़ैब का भेद न पाया, अनुरागी लौ लीना।
कह कबीर सुनो जति गौरख, भेद न पाया मीना।।