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अवसर चूकने पर बोले तो क्या बोले – What would you say if you missed the opportunity anmol kahani

अवसर चूकने पर बोले तो क्या बोले

अवसर तेरा जाता है, कुछ तो मुँह से बोल। 
बे अवसर के बोल के, क्‍यों संकट ले मोल॥ 
बरसात का मौसंम था। एक दिन खूब वर्षा हुई। रात्रि के नौ बजे चार भिखारी एक दुकान के चबूतरे पर बैठे हुए बातें कर रहे थे। उनमें से एक बोला- बड़ा सुहावना समय है। कल सवेरे शहर से बाहर जाकर वहाँ पर ही खान-पान करना चाहिए।
अवसर चूकने पर बोले तो क्या बोले - What would you say if you missed the opportunity anmol kahani

दूसरा बोला-तुम ठीक कह रहे हो। तीसरा बोला-अवश्यमेव चलना चाहिए, चौथा बोला–फिर देर किस बात की? अब बताओ कौन-कौन क्या-क्या चीजें लायेगा? एक ने कहा मैं आटा दाल ले आऊँगा, दूसरे ने कहा-मैं चावल व चीनी ले आऊँगा, तीसरा बोला-मैं भोजन तैयार कर दूँगा तथा सिगरेट पानी भी ले आऊँगा। तब उनमें से एक ने कहा असली चीज तो रह ही गई, वह है घी, उसे कौन लाएगा? यह सुनकर सब चुप रह गये। तब उनमें से एक ने सुझाव दिया

कि यहाँ पर सब बैठ जाओ। हममें सबसे पहले जो खाँसेगा या बोलेगा वही ढाई सेर घी लाएगा। इतना सुनकर चारों चबूतरे पर मौन धारण कर बैठे रहे। चारों में से यदि किसी को खाँसी आती तो वह मुँह में धोती को ठूँस लेता। इस प्रकार बैठे-बैठे रात के दो बज गये। तब वहाँ पुलिस का दल गस्त करते हुए आया। उन्होंने अंधेरे में बैटरी की लाइट फैंकी तो उन्हें दुकान के चबूतरे पर चार आदमियों को बैठे देखा। थानेदार ने उनसे पूछा तुम लोग कौन हो और यहाँ क्‍यों बैठे हो? 
थानेदार की बात सुनकर चारों एक दूसरे की तरफ देखने लगे, परन्तु मुंह से कोई नहीं बोला। प्रत्येक मन में सोचने लगा कि अगर तू बोला तो ढाई सेर घी देना पड़ेगा। थानेदार गुस्से में भरकर बोला -अबे तुम बोलते क्‍यों नहीं? सारांश यह है कि आधा घंटे थानेदार की डाट फटकार पर जब उनमें से कोई नहीं बोला तो थानेदार ने सिपाहियों से कहा -इन बदमाशों को गिरफ्तार कर थाने ले चलो। सिपाहियों ने चारों को पकड़कर थाने ले जाकर हवालात में बन्द कर दिया। तब उनमें से एक ने हाथ उठाकर इशारा किया,
 जिसका अर्थ था कि अब क्‍या होगा? दूसरे ने माथे पर हाथ रखा, जिसका अर्थ था कि जो भाग्य में लिखा होगा, वहीं होगा। तीसरे ने हाथ से इशारा किया कि अब चक्की पीसनी पड़ेगी। चौथे ने हाथ की छ: उँगलिया उठाई जिसका अर्थ था कि छः माह से कम की सजा न होगी। 
इतना संकट उपस्थित होने पर भी ढाई सेर घी के देने के डर से कोई भी नहीं बोला। इसी उधेड़ बुन से दिन निकल आया। सुबह होने पर थानेदार ने सिपाहियों को रात वाले चारों बदमाशों को लाने का आदेश दिया। आदेश पाकर सिपाहियों ने चारों बदमाशों को थानेदार के सम्मुख उपस्थित कर दिया। थानेदार के पूछने पर भी चारों ने अपना मुँह नहीं खोला। इस पर थानेदार ने अपना हन्टर मंगाया थानेदार ने अपने हन्टर से चारों की खूब पिटाई की परन्तु इतनी मार खाने पर भी कोई नहीं बोला। हन्टर से जोर से पिटाई होने पर एक आदमी मुँह फाड़कर बोला-हाँ…हाँ…हाँ…हुजूर।  
उसके मुँह से हाँ…हाँ… निकलते ही शेष तीनों बोले- थानेदार साहब इससे हमारी चारों की शर्त के अनुसार इससे ढाई सेर घी दिलवाइये। थानेदार ने पूछा -अबे क्‍या बात  है? कैसी शर्त? उन्होंने थानेदार को अपना रात का सारे का  सारा प्रोग्राम सुनाते हुए घी लाने की जो शर्त तय हुई थी वह सब बात बता दी। थानेदार ने जब यह सुना कि जो पहले बोले वह ढाई सेर घी लाबेगा तो उनको बड़ी हँसी आई और बोले भागो यहाँ से। 
इस दृष्टान्त का अर्थ है कि हम भगवान का नाम लेने में आनाकानी करते हैं और समय व्यतीत हो जाने पर पछताते हैं। समयानुसार कभी चुप नहीं रहना चाहिए नहीं तो लाभ के बदले दुगनी हानि उठानी पड़ सकती है। 
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