क्या करोगे?
एक स्त्री बड़े आदर भाव से ठाकुरजी की पूजा करती थी। वह ठाकुरजी को अच्छे-अच्छे कपड़े पहनाती, अच्छे पदार्थों का भोग लगाती और सवेरे-सवेरे उठकर ठाकुरजी को स्स्नान कराती थी।
वह ठाकुरजी का काम करते समय अपने को भूल जाती थी। यद्यपि वह बड़े प्रेम से भक्ति में लीन रहती थी परन्तु वह बड़ी अभिमानी थी। दूसरों से वह कठोर वाणी में बात करती, बालकों को गन्दी गालियाँ देती और क्रोधित हो जाने पर दो-दो दिन तक उसका क्रोध शान्त नहीं होता था।
एक दिन एक वैष्णव उसके घर पर आया। उसने उस औरत को समझाते हुए कहा – आज तुम्हारे ठाकुरज्ञी स्वप्न में मिले थे। ।
स्त्री बोली – तुम भाग्यशाली हो। मुझे तो आज तक , उनके दर्शन नहीं हुए। थोड़ा रुककर पुनः स्त्री बोली – बताओ तौ सही, ठाकुरजी ने तुमसे क्या कहा है?
वैष्णव बोला – ठाकुरजी ने कहा था कि मैं बहुत समय से भूखा हूँ, तुम मुझे अपने घर ले चलो। तब मैं बोला – हे स्वामी! यह स्त्री प्रतिदिन आपको जिमाती है, फिर आप यह क्यों कह रहे हैं कि मैं भूखा हूँ ।
ठाकुरजी ने बताया – मैं उस स्त्री के भोग की ओर ताकता भी नहीं । क्योंकि वह बच्चों से लड़ती रहती है और गालियाँ देती रहती है। इसी वजह से मुझे उसका भोजन नहीं सुहाता। उन्होंने मुझसे पूछा – यदि तुम्हारे बच्चों को कोई मारे पीटे या गाली दे और वे रोने लगे तो क्या उस समय तुम्हें छप्पन प्रकार का पकवान भी अच्छा लगेगा। मुझ से इतना कहकर ठाकुरजी अन्तर्धान हो गये।
वह औरत अपनी गलती समझ गई और तब से वह सबसे अच्छा व्यवहार करने लगी।।