परिवर्तनशील के लिये सुख-दुःख क्या मानना
एक सम्पत्र घर के लड़के को डाकुओ ने पकड लिया और अरब के एक निर्दय व्यक्ति के हाथ बेच दिया । निष्ठुर अरब उस लड़के से बहुत अधिक परिश्रम लेता था और फिर भी उसे झिड़कता और पीटताँ रहता था । पेटभर भोजन भी उस लड़के को नहीं मिलता था। एक व्यापारी घूमता हुआ उस नगर में पहुँचा । वह
लड़के को पहिचानता था । उसने लड़के से पूछा…’आजकल तुम्हें वहुत क्लेश है ?
लडका बोला…”जो पहले नहीं थी और आगे भी नहीं रहेगी, उस परिवर्तनशील अवस्था के लिये क्लेश क्या मानना ।
What to consider happiness and sorrow for change |
वर्ष बीतते गये । अरब बृद्ध हुआ, मर गया । अरव की स्त्री और अबोध बालक निराधार हो गये । उनका वह गुलाम अब युवक हो गया था । मरते समय अरब ने उसे अपने दासत्व से मुक्त कर दिया था । वही अब स्वयं उपार्जन करके अरब की पत्नी और पुत्र का भी भरण-पोषण करता था । वह व्यापारी फिर उस नगर में आया और युवक से उसने पूछा- अब क्या दशा है ?
युवक बोला-जो पहले नहीं थी और आगे भी नहीं रहेगी । उस परिवर्तनशील अवस्था के लिये सुख क्या मानना और दुख भी क्यों मानना ।
युवक उन्नति करता गया । वह अपने कबीले का सरदार हुआ और धीरे धीरे उस प्रदेश का राजा हो गया । व्यापारी फिर उस नगर में आया तो राजा से मिले बिना जा नहीं सका । मिलने पर उसने कहा- श्रीमान्! आपके इस बैभव के लिये धन्यवाद ।
राजा ने शान्त स्थिर भाव से कहा- भाई ! जो पहले नहीं थी और आगे भी नहीं रहेगी, उस परिवर्तनशील अवस्था के लिये उल्लास क्या और खेद भी क्यों ।’