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वास्तविक वैराग्य क्या है – what is real mortification

वास्तविक वैराग्य क्या है 

रायगढ़। आध्यत्मिक दार्शनिक प्रवचन में जगदगुरू श्री कृपालु जी महाराज की प्रमुख प्रचारिका सुश्री श्रीश्वरी देवी ने उपस्थित श्रद्धालुओं से कहा कि केवल घर छोड़कर जंगल में बैठ जाना ही वैराग्य नहीं कहलाता अपितु संसार में रहते हुए भी मन में संसार की आशक्ति का त्याग ही वास्तविक वैराग्य है। मन ही हमारे प्रत्येक कार्य का कर्ता है। अतएव हमें बाहर से नहीं बल्कि भीतर से विरक्त होना है। संसार में ना कहीं राग हो ना कहीं द्वेश हो और राग और द्वेश से रहित होने का अहंकार भी ना हो यही वैराग्य की परिभाषा है।

Vairagya (वैराग्य)

संसार में राग और द्वेश दोनों ही खतरनाक हैं। जैसे पिघली हुई लाख में जब कोई रंग छोड़ा जाता है तो वह रंग लाख के परमाखु में समा जाता है और लाख उसी रंग का दिखने लगता है। ठीक ऐसे ही जब हम किसी से राग या द्वेश करते हैं तो हमारा अंत:करण संबंधित व्यक्ति या वस्तु के लिए पिघलता है और वो व्यक्ति हमारे अंत:करण में समा जाता है।

अतएव यदि हम संसार से राग या द्वेश करे तो ये संसार हमारे अंत:करण में समा जाएगा और हमारे अंत:करण को और गंदा कर देगा किन्तु यदि हमने भगवान और महापुरूष के प्रति अपने मन का लगाव करे तो अंत:करण शुद्ध हो जाएगा, दिव्य हो जाएगा एवं सदा-सदा के लिए हम आनंदमय हो जायेंगे। इस अवसर पर ग्राम बैसपाली आयोजक कमलेश कुमार डनसेना एवं श्रीमती सावित्री डनसेना सहित आसपास के ग्रामीण महिला-पुरूष बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

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