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बाइबल असल में क्या सिखाती है?-What Does the Bible Really Teach?

बाइबल असल में क्या सिखाती है?
क्या इंसानों के अंदर कोई अमर आत्मा है?
जब आप “प्राण” या “आत्मा” जैसे शब्द सुनते हैं, तो फौरन आपके दिमाग में क्या बात आती है? कई लोग इन शब्दों का यह मतलब समझते हैं कि हमारे अंदर साए जैसी कोई चीज़ होती है जो अमर होती है। वे सोचते हैं कि इंसान की मौत के वक्‍त उसके अंदर मौजूद यह साया, शरीर से निकल जाता है और हमेशा ज़िंदा रहता है। यह धारणा इतनी आम है कि बहुतों को यह जानकर ताज्जुब होता है कि बाइबल ऐसा बिलकुल नहीं सिखाती। तो फिर, परमेश्वर के वचन के मुताबिक प्राण और आत्मा क्या हैं?
बाइबल असल में क्या सिखाती है? | बाइबल सिखाती है
What Does the Bible Really Teach?

बाइबल में शब्द “प्राण” कैसे इस्तेमाल हुआ है
सबसे पहले, आइए प्राण शब्द पर गौर करें। आपको शायद याद हो कि बाइबल का ज़्यादातर हिस्सा शुरू में इब्रानी और यूनानी भाषा में लिखा गया था। बाइबल में प्राण या प्राणी का ज़िक्र करने के लिए इब्रानी शब्दनीफेश और यूनानी शब्द साइखी, कुल मिलाकर 800 से ज़्यादा बार इस्तेमाल किए गए हैं। हिंदी बाइबल में इन शब्दों का अकसर “प्राण” या “प्राणी” अनुवाद किया गया है। और अँग्रेज़ी न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन बाइबल में इनका अनुवाद हर बार एक ही शब्द “सोल” किया गया है। इसलिए जब आप जाँच करेंगे कि शब्द “प्राण” का बाइबल में किस अर्थ में इस्तेमाल हुआ है, तो साफ देख सकेंगे कि यह ज़्यादातर (1) लोगों के लिए, (2) पशुओं के लिए, या फिर (3) इंसानों या पशुओं की जान के लिए इस्तेमाल  हुआ है। आइए ऐसी कुछ आयतों पर गौर करें, जिनमें ये तीन मतलब साफ दिखायी देते हैं।
लोग। “नूह के दिनों में . . . थोड़े लोग अर्थात्‌ आठ प्राणी पानी के द्वारा बच गए।” (1 पतरस 3:20) इस आयत में शब्द “प्राणी” लोगों को दर्शाता है, यानी नूह, उसकी पत्नी, तीन बेटों और उनकी पत्नियों को। निर्गमन 16:16 में वे हिदायतें हैं जो इस्राएलियों को मन्ना बटोरने के सिलसिले में दी गयी थीं। उनसे कहा गया था: “अपने अपने प्राणियों की गिनती के अनुसार, . . . जिसके डेरे में जितने हों वह उन्हीं भर के लिये बटोरा करे।” इसका मतलब यह है कि हर परिवार में जितने लोग थे, उनकी गिनती के हिसाब से उन्हें मन्ना बटोरना था। बाइबल में “प्राण” या “प्राणी” शब्द किसी एक जन या कई लोगों के लिए इस्तेमाल किए जाने की दूसरी मिसालें उत्पत्ति 46:18; 17:14; निर्गमन 12:15, 19; लैव्यव्यवस्था 20:6; 23:30 और यहोशू 11:11 में पायी जाती हैं।
पशु। बाइबल में सृष्टि का ब्यौरा इस तरह दिया गया है: “परमेश्वर ने कहा, जल जीवित प्राणियों से बहुत ही भर जाए, और पक्षी पृथ्वी के ऊपर आकाश के अन्तर में उड़ें। फिर परमेश्वर ने कहा, पृथ्वी से एक एक जाति के जीवित प्राणी, अर्थात्‌ घरेलू पशु, और रेंगनेवाले जन्तु, और पृथ्वी के वनपशु, जाति जाति के अनुसार उत्पन्न हों; और वैसा ही हो गया।” (उत्पत्ति 1:20, 24) इन आयतों में मछलियों, पालतू जानवरों और जंगली पशुओं, सबके लिए एक ही शब्द इस्तेमाल किया गया है—“प्राणी।”उत्पत्ति 9:10 और लैव्यव्यवस्था 11:46 में भी पक्षियों और दूसरे पशुओं को प्राणी कहा गया है।
इंसान की जान। कुछ आयतों में शब्द “प्राण” का मतलब है, इंसान की जान। यहोवा ने मूसा को बताया था: “जो मनुष्य तेरे प्राण के प्यासे थे वे सब मर गए हैं।” (निर्गमन 4:19) मूसा के दुश्मन किस चीज़ के प्यासे थे? मूसा की जान के। बाइबल बताती है कि इससे बहुत साल पहले, जब राहेल अपने बेटे बिन्यामीन को जन्म दे रही थी, तो ‘प्राण निकलते निकलते, वह मर गई।’ (उत्पत्ति 35:16-19) उस घड़ी, राहेल ने दम तोड़ दिया। यीशु के इन शब्दों पर भी गौर कीजिए: “अच्छा चरवाहा मैं हूं; अच्छा चरवाहा भेड़ों के लिये अपना प्राण देता है।” (यूहन्ना 10:11) यीशु ने इंसानों की खातिर अपना प्राण या अपनी जान दी। बाइबल की इन सारी आयतों में शब्द “प्राण” का मतलब एक इंसान की जान है। “प्राण” का यही मतलब दिखानेवाली और भी ज़्यादा मिसालें आप1 राजा 17:17-23; मत्ती 10:39; यूहन्ना 15:13 औरप्रेरितों 20:10 में पा सकते हैं।
 परमेश्वर के वचन का लगातार अध्ययन करते रहने से आप देख पाएँगे कि पूरी बाइबल में कहीं भी शब्द “प्राण” के साथ “अमर” या “अनंत” जैसे शब्द नहीं जोड़े गए हैं। इसके बजाय, बाइबल साफ बताती है कि प्राण नश्वर है, यानी वह नष्ट हो जाता है। (यहेजकेल 18:4,20) इसलिए जो प्राणी मर जाता है, वह बाइबल के मुताबिक एक मृत नीफेश है यानी मरने पर उसका कोई भी अंश ज़िंदा नहीं रहता।—सभोपदेशक 9:5, 10.

“आत्मा” क्या है

अब आइए देखें कि बाइबल में शब्द “आत्मा” का इस्तेमाल किस अर्थ में किया गया है। कुछ लोग सोचते हैं कि “आत्मा,” “प्राण” के लिए ही इस्तेमाल होनेवाला दूसरा शब्द है। मगर यह सच नहीं है। बाइबल साफ दिखाती है कि “आत्मा” और “प्राण” शब्दों का अलग-अलग मतलब है। इन दोनों में क्या फर्क है?
सबसे बड़ा फर्क यह है कि बाइबल के लेखकों ने “आत्मा” के लिए, इब्रानी शब्द रूआख या यूनानी शब्दन्यूमा का इस्तेमाल किया था, न कि नीफेश औरसाइखी। बाइबल को जाँचने पर रूआख और न्यूमा का मतलब साफ समझ में आता है। मिसाल के लिए, भजन 104:29 कहता है: “तू [यहोवा] उनकी सांस [रूआख] ले लेता है, और उनके प्राण छूट जाते हैं और मिट्टी में फिर मिल जाते हैं।” और याकूब 2:26 कहता है: “देह आत्मा [न्यूमा] बिना मरी हुई है।” तो फिर, इन आयतों में शब्द “सांस” या “आत्मा” का मतलब वह चीज़ है जो शरीर को ज़िंदा रखती है। इसके बगैर शरीर मरा हुआ है। इसलिए, कई बाइबलों में शब्द रूआख का अनुवाद न सिर्फ “आत्मा” किया गया है बल्कि “जीवन का श्वास” या जीवन-शक्ति भी किया गया है। मिसाल के लिए, नूह के दिनों के जलप्रलय के बारे में परमेश्वर ने कहा: “मैं स्वयं आकाश के नीचे के सब प्राणियों को जिनमें जीवन का श्वास [रूआख] है नाश करने के लिए पृथ्वी पर जलप्रलय करने पर हूं।” (उत्पत्ति 6:17; 7:15, 22,NHT) यह दिखाता है कि “आत्मा” कोई अदृश्य साया नहीं बल्कि ऐसी अनदेखी शक्ति (जीवन-ज्योति) है, जिससे सभी जीवित प्राणी ज़िंदा हैं और चलते-फिरते हैं।
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सरल शब्दों में कहें तो, जैसे रेडियो को काम करने के लिए बिजली की ज़रूरत होती है, उसी तरह शरीर के ज़िंदा रहने के लिए जीवन-शक्ति या आत्मा की ज़रूरत होती है। इस बात को और अच्छी तरह समझने के लिए एक ऐसे रेडियो की मिसाल लीजिए, जिसे आप कहीं भी ले जा सकते हैं। जब आप रेडियो में बैटरी डालते हैं और उसे चलाते हैं, तो बैटरियों में मौजूद बिजली से रेडियो में मानो जान आ जाती है, वह काम करने लगता है। मगर बैटरियों के बिना रेडियो बेजान होता है। या  फिर, अगर रेडियो तक बिजली पहुँचानेवाले तार को प्लग से निकाल दिया जाए, तो रेडियो बंद हो जाता है। उसी तरह, आत्मा एक ऐसी जीवन-शक्ति है जिसके बल पर हमारा शरीर ज़िंदा रहता है। और जैसे बिजली की कोई भावनाएँ नहीं होतीं, वह खुद कुछ सोच नहीं सकती, वैसे ही आत्मा भी है। यह एक शक्ति है, कोई व्यक्ति नहीं। और जैसे भजनहार ने कहा था, इस जीवन-शक्ति के बिना हमारे “प्राण छूट जाते हैं और [हम] मिट्टी में फिर मिल जाते हैं।”
इंसान की मौत के बारे में सभोपदेशक 12:7 कहता है: “तब मिट्टी [उसकी देह] ज्यों की त्यों मिट्टी में मिल जाएगी, और आत्मा परमेश्वर के पास जिस ने उसे दिया लौट जाएगी।” जब शरीर से आत्मा या जीवन-शक्ति निकलती है, तो शरीर मर जाता है और वहीं लौट जाता है जहाँ से वह निकला था, यानी मिट्टी में। उसी तरह, जीवन-शक्ति भी वहीं लौट जाती है, जहाँ से यह आयी थी—परमेश्वर के पास। (अय्यूब 34:14, 15; भजन 36:9) मगर, इसका यह मतलब नहीं कि हमारे अंदर से कोई अमर साया निकलकर सफर करता हुआ स्वर्ग जाता है। इसके बजाय, इस आयत का मतलब है कि जब एक इंसान मर जाता है तो वह भविष्य में दोबारा ज़िंदा होगा या नहीं, यह यहोवा पर निर्भर करता है। दूसरे शब्दों में कहें, तो उसकी ज़िंदगी परमेश्वर के हाथ में है। सिर्फ परमेश्वर की शक्ति से ही, उस इंसान में आत्मा या जीवन-शक्ति दोबारा डाली जा सकती है जिससे वह फिर से जी सकता है।
हमें इस बात से कितनी तसल्ली मिलती है कि परमेश्वर ठीक ऐसा ही करनेवाला है! आज जितने भी लोग “स्मारक कब्रों” में मौत की नींद सो रहे हैं, उन्हें वह दोबारा ज़िंदा करेगा। (यूहन्ना 5:28, 29, NW) जब यहोवा उनका पुनरुत्थान करेगा, तब वह उनके लिए एक नया शरीर तैयार करेगा, और उसके अंदर जीवन-शक्ति डालकर उन्हें ज़िंदा करेगा। वह क्या ही खुशियों भरा दिन होगा!
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