Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
आशिक़ होना फिर सोना क्या रे।
जो तेरी आँख्यां में नींद घनेरी, तकिया और बिछौना क्या रे।
बासी कुसी गम के टुकड़े, फिर मीठा और अलुना क्या रे।
जिस नगरी में दया धर्म नहीं, उस नगरी में रहना क्या रे।
कथगी कमाली कबीरा थारी बाली, शीश दिया फिर रोना क्या रे।