इन्द्रियों पर विजय
विजय इन्द्रियों पर करें, वो जग में बलवान।
देव, मनुज और ऋषिगण करें उसी का मान॥
एक समय की बात है कि पाण्डव पुत्र धनुर्विद्या सीखने हेतु इन्द्रपुरी में शुक्राचार्य जी के पास गया। उन्हें प्रणाम कर हाथ जोड़कर वह उनसे बोला- गुरुदेव! मैं धनुर्विद्या सीखने की इच्छा से आपके पास आया हूँ। शुक्राचार्य जी ने उसकी परीक्षा लेने को दृष्टि से कहा–हे वत्स! मैं तुम्हें धनुर्विद्या अवश्य सिखाऊँगा। अभी तुम कुछ देर विश्राम करो। इतना कहकर अर्जुन को एक कुटि विश्राम करने हेतु बता दी। अर्जुन उस कुटि में विश्राम करने लगा।
एक दिन अर्जुन संध्या के समय अपनी कुटिया के दरवाजे बन्द करके अन्दर बैठा था। शुक्राचार्य जी इन्द्रदेव की प्रधान अप्सरा के पास जाकर बोले–पाण्डव पुत्र अर्जुन मेरे से धनुर्विद्या सीखने के लिए आया हुआ है। तुम अर्जुन के पास जाकर उसकी परीक्षा लो ।
कि वह अपनी इन्द्रियों और मन पर कहाँ तक काबू रखता है। उर्वशी ने गुरुदेव की आज्ञा पाकर श्रृंगार किया और अर्जुन की कुटिया पर पहुँच गयी। दरवाजा बन्द देखकर उसने दरवाजा खट-खटाकर कहा -दरवाजा खोलो, में तुम्हारे दर्शनों के लिए बहुत दूर से आयी हूँ। अर्जुन ने दरवाजा खोला तो देखा कि द्वार पर एक सुन्दरी खड़ी है। अर्जुन बोले–मेरे लिए क्या आज्ञा है? किस कारण वश तुम इस समय रात्रि में मेरे पास आई हो। उर्वशी बोली-हे प्यारे अर्जुन! मैं तुमसे गंधर्व विवाह करने के लिए तुम्हारे पास आयी हूँ।
अर्जुन ने कहा–हे देवी! इस गंधर्व विवाह से तुम्हें क्या लाभ होगा? उर्वशी ने कहा–हे अर्जुन! गंधर्व विवाह हो जाने के फलस्वरूप एक रूपवान, गुणवान, बलवान पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी । इससे हम दोनों की कीर्ति संसार भर में फैल जायेगी। अर्जुन उवंशी की बात सुनकर बोला–बस? इतनी सी बात के लिए तुम मुझ से गंधर्व विवाह करना चाहती हो तुम्हें तो केवल पुत्र ही चाहिये ना। उर्वशी ने हाँ में उत्तर दिया।
अर्जुन ने कहा–व्यर्थ में नौ माह तक पेट में बोझा टाँगे-टाँगे फिरोगी। गर्भ का कष्ट अलग से उठाना पड़ेगा। फिर जरूरी नहीं कि लड़का ही हो, लड़की भी हो सकती है। यदि तुम तेजस्वी और बलवान पुत्र ही चाहती हो तो मैं तुम्हें एक आसान उपाय बताता हूँ कि ( हींग लगे न फिटकरी रंग भी चोखा आये )। जिससे तुम्हें पुत्र मिल जाये। उर्वशी बोली वह क्या उपाय है?
अर्जुन ने कहा-
सारे झगड़े छोड़ आ मेरी निगाह बां बन जा।
मैं तेरा बेटा बनूं, तू मेरी माँ बन जा॥
अब तक मैं समझता था कि मेरी माँ कुन्ती ही इस संसार में बड़ी रूपवान है, परन्तु तुम्हारे रूप को देखकर मैं अपनी माता कुन्ती को भूल रहा हूँ। अब में भगवान से यही प्रार्थना करूँगा कि अगले जन्म में तुम ही मेरी माँ बनना।
अर्जुन के ऐसे पवित्र विचार सुनकर उर्वशी लज्ित होकर अर्जुन को श्राप देकर शुक्राचार्य जी के पास लौट आयी।
भाइयों! उपरोक्त व्याख्यान से पता चलता है कि धर्मप्राण भारतवर्ष में अर्जुन जैसे क्षत्रीय पुत्र हो गये हैं जिन्होंने अपनी इन्द्रियों को विषय-वासना से सर्वथा अलग रखकर भारत के मण्डल को दूसरे लोक में जाकर भी उजवल बनाये है। यदि आज के युग का अर्जुन होता तो वह उर्वशी हे अप्सरा से गंधर्व विवाह करके अपनी काम वासना लेता। अतः भारत के नवयुवक अर्जुन के इस अपना कर अपनी चंचल इन्द्रियों का दमन करेंगे।