बरूथिनी एकादशी
यह व्रत वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन रखा जाता है। यह व्रत सुख सोभाग्य का प्रतीक है। इस व्रत का महत्त्व सुपात्र ब्राह्मण को दान देने, करोड़ों वर्ष तक नग्न तपस्या करने तथा कन्यादान के भी फल से बढ़कर है। ब्रत करने वाले के लिये खासतौर से उस दिन खाना, दातुन फाड़ना, निन्दा , क्रोध करना और असत्य बोलना वर्जित है। इस व्रत में तेलयुक्त भोजन नहीं करना चाहिए। इसका माहात्म्य सुनने से सहस्र गऊओं की हत्या का भी दोष नष्ट हो जाता है। इस प्रकार यह बहुत ही फलदायक व्रत है।
बरूधिनी एकादशी व्रत की कथा
पुराने समय कौ बात है एक बार नर्मदा नदी के तट पर मांधाता नामक राज राज्य-सुख भोग रहा था। राजकाज करते हुए भी वह अत्यंत दानशील तेथ तपस्वी था। एक दिन जब वह तपस्या कर रहा था उसी समय एक जंगली भालू आकर उसका पैर चबाने लगा। थोड़ी देर बाद वह राजा को घसीटकर वन में ले गया। तब राजा ने घबराकर तापस धर्म के अनुकूल हिंसा, क्रोध न करके भगवान विष्णु से प्राथना की । भक्तवत्सल भगवान प्रकट हुए और भालू को अपने चक्र से मार डाला। राजा का पैर भालू खा चुका था इससे वह बहुत ही शोकाकुल हुआ विष्णु भगवान ने उसको दुःखी देखकर कहा-कि “हे वत्स! मथुरा में जाकर तुम मेरी वाराह अवतार मूर्ति की पूजा और बरूथिनी एकादशी का ब्रत करो। उसके प्रभाव से तुम फिर से पूर्ण अंगों वाले हो जाओगे।’” भालू ने जो तुम्हें काटा है यह तुम्हारा पूर्वजन्म का अपराध था। राजा ने इस ब्रत का अपार श्रद्धा से किया तथा मोक्ष को प्राप्त हुआ ।