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Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
समझ-२ गुण गाओ रे प्राणी,भुला मन समझाओ रे।।
बालू के बीच बिखर गई बूरा,सारी हाथ न आवै रे।
ऐसा हो परदेसी म्हारा मनवा, चींटी बन चुग जावै जी।।
जैसे कामनी चली कुँए को,घड़ा नीर भर लावै जी।
धीरज चाल चले मतवाली, सूरत घड़े में लावै जी।।
जैसे सती चढ़े चिता पे, सत्त के वचन सुनावै जी।
उसकी सूरत रहे जलने में, डिगे ठोर ना पावै जी।।
जैसे ध्यानी बैठा ध्यान में, ध्यान गुरू में लावै जी।
शरण मछँदर जति गोरख बोले, सत्त छोड़ पत जावै जी।।